महाराज युधिष्ठिर अपने कक्ष में सामंतों के साथ व्यस्त थे!तभी बाह्य द्वार पर युद्ध विजय के विजय घोष और शंख, नगाडे,ढोल आदि वाद्यों की आवाज़ हुई!युधिष्ठिर बाहर आये तो देखा कि लघु भ्राता भीम वाद्य-यंत्र वादकों को निर्देश दे रहे थे!
"भ्राता भीम, अभी कोई युद्ध नहीं हुआ और ना कोई युद्ध विजय तो यह वाद्य यंत्र क्यों बजाये जा रहे हैं"!
"महाराज, क्षमा करें, आज आपने युद्ध से भी बडी विजय प्राप्त की है"!
"हम आपका आशय समझने में असमर्थ है, भ्राता भीम"!
"महाराज, अभी आपके पास जो विप्र आये थे, आपने उनको कल आने का आदेश दिया , इसका तात्पर्य यह हुआ कि आपने काल पर विजय प्राप्त कर ली, आप तो काल-जयी हो गये, अतः विजय घोष तो होना ही चाहिये"!
"भ्राता भीम, आपने हमारी आंखें खोल दी, हम भयंकर भूल करने जा रहे थे!
हम स्वयं विप्र महोदय के पास जायेंगे , क्षमा मांगेगे एवम उनकी समस्या हल करेंगे"!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय तेज़वीर जी बहुत ही गूढ़ अर्थ लिए प्रभावशाली लघु कथा बन पड़ी है। दिल से दाद कबूल फरमाएं आदरणीय।
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय तेज वीर जी
संदेशप्रद रचना हेतु बधाई आदरणीय
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पान्डे जी!लघुकथा को समय देने के लिये और सराहने के लिये!पहले मैंने काल-जयी नाम ही सोचा था, फ़िर मुझे लगा कि काल जयी तो वे हुए ही नहीं,यही तो उनकी भूल थी जिसका अहसास भीम ने इस तरह से कराया और वे यह भयंकर भूल करने से बच गये!लघुकथा का आशय मात्र इतना है कि आज का काम कल पर मत टालो!सादर!
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