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दोहा गीत (एक प्रयास)

मनुज रूप मैं पा गया,

हुआ स्वप्न साकार

 

 

कोमल किरणे भोर की,

बिखराती जब नेह है,

दिखती उल्लासित धरा

आन्दंदित हर देह है.

 

सचमुच एक सराय सा

लगा मुझे संसार

 

प्यार भरे व्यवहार से

मिलती देखी जीत है,

बना एक अनजान जब,

मेरे मन का मीत है

 

सच्ची निष्ठा ने किया,

हरदम बेडा पार

 

लोभ मोह माया कपट,

सारे लगते काल हैं,

सत्य यहाँ है मौत ही,

बाकी सब जंजाल हैं.

 

परम पिता का शुक्रिया

और नमन हरबार.

 

 

मौलिक/अप्रकाशित.

 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 20, 2015 at 11:59pm

अभ्यास के तौर पर अच्छा रचनाकर्म हुआ है आदरणीय अशोकजी.
वैसे कई जगह विशेष तौर पर ध्यान देने की आवश्यकता है लेकिन चूँकि आपने पहली बार इस तरह की विधा पर काम किया है उस हिसाब से आपका प्रयास श्लाघनीय है. हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 11, 2015 at 12:34pm

क्या बात है , ये विधा तो बहुत अच्छी लगी , आदरणीय , दोहा गीत , लाजवाब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2015 at 8:53pm

दोहा-गीत  अद्भुत प्रयास ' की आवश्यकता कहाँ है और इस 'है' से दोहे  भी  मात्रा  से भटक गये . सारा गीत दोहे में ढल सकता था आदरणीय तथापि नए प्रयोग हेतु आपको बधायी .

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on July 10, 2015 at 11:32am

बधाई  मित्र - सुन्दर रचना के लिए 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 8:07pm

आदरणीय सुशील सरना जी सादर, दोहा गीत  पर  मेरा प्रथम  ही  प्रयास  है. आपको  यह  अच्छा  लगा  मैं  आश्वस्त  हुआ. बहुत-बहुत  आभार. सादर. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 8:05pm

आदरणीय  मिथिलेश  वामनकर  जी  सादर, आपको  मेरा यह  प्रयास  अच्छा  लगा, मुझे  संतोष मिला. हार्दिक  आभार. सादर. 

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 8:01pm

लोभ मोह माया कपट,
सारे लगते काल हैं,
सत्य यहाँ है मौत ही,
बाकी सब जंजाल हैं.

परम पिता का शुक्रिया
और नमन हरबार.
.... .... वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर,सार्थक दोहा गीत बन पड़ा है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 7:04pm
आदरणीय अशोक रक्ताले सर
बहुत सुन्दर गीत हुआ है। इस दोहा गीत की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 6:29pm

आदरणीय राहुल दांगी जी  आपको दोहा गीत पर  मेरा प्रयास पसंद आया मुझे संबल मिला. सादर आभार.  

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 6:29pm

आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, बिलकुल सहमत हूँ मैं. मुझे मंच  ने जो दो उदाहरण उपलब्ध कराये हैं, उनके एक गीत में कुछ इसीतरह से रचना की गई है और एक  जिस तरह आप कह रहीं हैं. जिसमे अंतरा लगभग एक दोहा ही हो जाता है. मैंने एक गीत उस तरह भी रचा है. शीघ्र ही वह भी प्रस्तुत करूँगा. गीत पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत  आभार. सादर. 

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