2122 / 2122 / 212 |
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आजकल जो मित्रवत व्यवहार है |
एक धोखा है नया व्यापार है |
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सर्जना भी अब कहाँ मौलिक रही |
जो पढ़ेंगे आप वो साभार है |
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वो मनुजता मारकर बैठे है मित्र |
आपका रोना यहाँ बेकार है |
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किस तरह संवेदनाएं जुड़ सके |
आज के सम्बन्ध तो बेतार है |
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देश में अदभुत व्यवस्था रच रहे |
स्वप्न भी उनका कहाँ साकार है |
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पुष्प की वर्षा हुई तो जान लो |
एक कंटक भी वहां तैयार है |
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हम गगन के स्वप्न में खोए रहे |
और खिसका जा रहा आधार है |
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एक निर्धन को मनुज माना, चलो |
आपका सबसे बड़ा उपकार है |
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जब मिले हैं बस उसे पत्थर मिले |
वृक्ष शायद वह बहुत फलदार है |
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Comment
शानदार गजल हुई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ............
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किस तरह संवेदनाएं जुड़ सके |
आज के सम्बन्ध तो बेतार है // |
आदरणीया राजेश दीदी, यह प्रयास आपको पसंद आया, लिखना सार्थक हो गया. आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
बहुत दिनों बाद ब्लॉग पोस्ट कर रहा हूँ. इन दिनों अध्ययन, पठन और पाठक के रूप में अभ्यासरत हूँ. सादर
आदरणीय गिरिराज सर आपको प्रयास पसंद आया जानकार मन को संतोष हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार
आपका मार्गदर्शन बहुत अच्छा है सही कहा कोई शब्द का अर्थ विस्तार अधिक है.
किस तरह संवेदनाएं जुड़ सके |
आज के सम्बन्ध तो बेतार है |
वाह्ह्ह्ह वाह्ह बहुत सुन्दर प्रस्तुति हर युग्म शानदार दिल से बधाई लीजिये मिथिलेश भैया |
आदरणीय मिथिलेश भाई , लाजवाब गज़ल हुई है , सभी अश आर बेहतरीन हैं । बधाई बधाई बधाई ।
एक कंटक भी वहां तैयार है को ऐसा कहें तो -- कोई कांटा भी वहाँ तैयार है ( एक - संख्या बताना मुझे कम अच्छा लगा है )
हा , हा , ये भी खूब कहा आपने आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी । जरूर प्रयास करूँगा इस पर और आप की टिप्पणी भी चाहूँगा प्रयास पर । वैसे ग़ज़ल लिखना बहुत कठिन कार्य है और मैं तो इसमें बिलकुल ही अनाड़ी हूँ ।
// आप जैसा व्यक्ति मिलना है कठिन
आप तो साहित्य के सरदार हैं // , बहुत उम्दा , हर शेर बेहतरीन है , आखिरी शेर तो बस क्या कहने आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी । वाह वाह , बधाई इस रचना के लिए..
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