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अब जो जायेंगे......."जान" गोरखपुरी

 २१२२     २२१२      २१२२      २२

 

अब जो जायेंगे उस गली तो सबा छेड़ेगी

वारे उल्फ़त! मुझको मेरी ही वफ़ा छेड़ेगी

 ..

जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते

हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी  

..

  जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी  

राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी

..

 वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर

बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी

..

 सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े

हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी

..

 

चूम के हाथ अपने  हवाओं के बोसे देना

अब तो सांसों की आती जाती हवा छेड़ेगी

..

था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में

अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी

*****************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c)"जान" गोरखपुरी

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Comment by kanta roy on July 2, 2015 at 9:12am
सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े
हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी
........ वाह !!! हर शेर लाजवाब है । बेहद शानदार गजल हुई है ये आपकी आदरणीय कृष्णा मिश्रा जान गोरखपूरी जी
Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 9:09am
जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते

हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी

वाह बहुत खूबसूरत शेर
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 7:48am
थोडी और स्पष्टता लायी जा सकती है। सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 7:46am
बहुत सुन्दर "
जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी
राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी" सच ही कहा आपने।
Comment by मनोज अहसास on July 2, 2015 at 2:50am
बहुत खूबसूरत
बेमिसाल
जो और जिसको का प्रयोग अधिक हो गया है
क्या ग़ज़ल ए मुसलसल इसे ही कहते है
निर्देशन करे

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