1212 1122 1212 22 /112
फ़लक पे जो मुझे अक्सर दिखाई देता है
वो आम लोगों में तनकर दिखाई देता है
अभी हैं बदलियाँ चारों तरफ से घेरी हुईं
तभी तो चाँद भी बदतर दिखाई देता है
जो तोप ले के चले साथ अपनें , वो हमको
कहें हैं हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है
निजाम के कहीं साजिश का मारा वो भी न हो
जो रात दिन अभी घर पर दिखाई देता है
पलट न दें कहीं आकाश ये सताये हुये
हरेक हाथ में पत्थर दिखाई देता है
वो छाँव बरगदी में खूब खेलते बच्चे
कहाँ , कहीं पे ये मंज़र दिखाई देता है
बहुत क़रीब से देखो न मेरे दागों को
रहेगा इंच वो गज भर दिखाई देता है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत क़रीब से देखो न मेरे दागों को
रहेगा इंच वो गज भर दिखाई देता है--------------------- बहुत उम्दा, अनुज .
bahut sundar bhaee jee
badhaee
बहुत क़रीब से देखो न मेरे दागों को
रहेगा इंच वो गज भर दिखाई देता है।
सुन्दर, बधाई , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।
आदरणीय नरेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरणीय बहुत सुन्दर
आदरणीय पाठको गज़ल के ऊपर दिए अरकान मात्रा लिखने में गलती हो गई है , कृपा कर बहर की मात्रा , निम्नानुसार पढ़ें
1212 1122 1212 22 / 112 -- धन्यवाद ॥
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय विनय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
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