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दोस्त निर्लिप्त है, टोकता भी नहीं
और पूछो अगर बोलता भी नहीं
बोलना जब मना, फाइदा भी नहीं
बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं
रात तारीकियों से घिरी इस क़दर
मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं
तुम अभी तो न घेरो अँधेरों मुझे
सब्र थोड़ा करो दिन ढला भी नही
अजनबी की तरह हम जिये जा रहे
मिल रहे रोज़ पर वास्ता भी नही
इक गज़ल कह दिया है मेरे दिल ने जो
खुश नुमा गर नहीं , मर्सिया भी नहीं
जब रहे पास तो , कोशिशें की मगर
दिल खुला जो नहीं, तो मिला भी नहीं
इक दिया बाल के आजमाओ न यूँ
आँधियाँ भी नहीं, है हवा भी नहीं
क़ायदा जिसपे हम ने यक़ीं था किया
दौड़ना छोड़िये वो चला भी नहीं
जो नज़र से गिरा तो गिरा इस क़दर
मैने खोजा नहीं ख़ुद मिला भी नहीं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरनीय राहुल भाई , सरहना और सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ।
हाल पूछे जो हम बोलता भी नहीं , सलाह बहुत अच्छा है , भाव अलग है , मै पहले मिसरे में खुद को गलत करने से न टोकने की बात कर रहा हूँ , तो द्दोद्सरे मिसरे में उसला हाल कैसे पूछँगा , मै ये कहना चाहता हूँ कि न तो वो खुद मुझे गलत करने से टोकता न ही मै पूछता हूँ कि क्या गलत है तो बताता ।
लना जब मना, फाइदा भी नहीं। मिसरे मे बो छूट गया है इसे कृपया पाठक यूम पढें ---
बो लना जब मना, फाइदा भी नहीं।
इक दिया बाल के आजमाओ न यूँ
आँधियाँ भी नहीं, है हवा भी नहीं --- इस शे र मे मै वही तो बोल रहा हूँ जो आप समझे हैं ---- जहाँ आँधी और हवा दोनो नही है अर्थात जहाँ खतरा ही नहीं वहाँ खुद को क्यों आजमा रहें हैं । आजमाओ न यूँ --- आप न को पढ़्ना भूल गये हैं शायद ॥
आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
रात तारीकियों से घिरी इस क़दर
मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ० गिरिराज जी बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय परि एम श्लोक भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया ।
आदरणीय सुशील सरना भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया आपका ।
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका बहुत बहुत आभार ,सराहना के लिये और दो शे र पसंद करने के लिये ।
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