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ये ज़मीं सारी मेरा घर कह लें
आप आयें जहाँ से, दर कह लें
जो कमाता है, बांटने के लिये
है तो इंसाँ, मगर शज़र कह लें
जान रखता हूँ मै हथेली पर
दोस्त माना मुझे अगर कह लें
सच को सच बोलने की आदत है
मेरी राहों को पुर ख़तर कह लें
आपके दर पे मांगने आया
आप चाहें, अगर- मगर कह लें
दिल के जज़्बात पिरो लाया हूँ
बिन पढ़े आप बे असर कह लें
मेरे अहबाब मेरी क़ुव्वत हैं
मेरी ख़ातिर, हैं बाल-ओ- पर कह लें
भीड़ मेरी तरफ जो लगती है
अस्ल में है उधर , उधर कह लें
मै ने बस आइना दिखाया था
अब ग़लत मुझको उम्र भर कह लें
आग लगती है मेरी बातों से
आप अब से उन्हें शरर कह लें
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आदित्य कुमार भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
मै ने बस आइना दिखाया था
अब ग़लत मुझको उम्र भर कह लें ---- शानदार
आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय विरेन्द्र भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
आप हैं तरक्की पर,
माने न माने सुन लें।
बहुत बहुत बधाई , बहुत बढ़िया, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी... बहुत अच्छी ग़ज़ल हुयी है जो मन को छू गयी!
विशेष कर ये पंक्तिया तो लाजवाब है सर......
आपके दर पे मांगने आया
आप चाहें, अगर- मगर कह लें
दिल के जज़्बात पिरो लाया हूँ
बिन पढ़े आप बे असर कह लें
मै ने बस आइना दिखाया था
अब ग़लत मुझको उम्र भर कह लें
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