स्याह धब्बा
ढलते सूरज-से रिश्ते की बुझती लालिमा
सिकुड़ती सिमटती जा रही
अनकही बातों के अरमानों की
अप्राकृतिक अकुलाहट
अपने ही कानों में भयानक
दुर्घटना-सी
अमावस-सी अँधियारी कसकती रात
डरता है व्याकुल बेसुध मन
कि अब तुम नहीं हो पास
बहता है दुख
बेचैन बदनसीब रिश्ता ...
अब स्याह धब्बे-सा
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गोपाल नारायन जी, मेरी भावनाओं को पूज्य जयशंकर प्रसाद जी के साथ नाम दे कर आपने मुझको बहुत मान दिया है... आँखें भीग गयी हैं। आपका हार्दिक आभार।
न होना के बाद होने का अहसाह होना बहुत कष्टदायक होता है!सुन्दर रचना! हार्दिक बधाई आ० विजय निकोर ज़ी!
रिश्ते जो रह नहीं पाते ,
कैसे ढलते, धूमिल हो जाते,
रंगत उड़ जाती,नहीं फिर भी जाते,
इक धब्बे से रह जाते.
बहुत खूब, क्या खूब लिखा है आपने आदरणीय विजय निकोर जी , बधाई, सादर.
आदरणीय निकोर जी
काश मैं आपका दर्द बाँट पाता . आप जैसी पीड़ा जयशंकर प्रसाद की भी थी . वह् कहते हैं -
रों रो कर सिसक सिसक कर कहता मैं करुण कहानी
तुम सुमन नोचते सुनते करते जानी अनजानी ---------------सुमन नोचना निष्ठुरता का प्रतीक . सादर .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online