मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन/ मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन (इस्लाही ग़ज़ल) |
|
गम दे, ख़ुशी दे ज़िन्दगी, कितनी किसे हिसाब क्या |
दरिया फ़ना हयात का, मुझसा वहां हुबाब क्या हुबाब-बुलबुला |
|
हँस के जिए दुआ किये, मर भी गए दुआ दिए |
तुम ही कहो ऐ मेहरबां, सबसे बड़ा सवाब क्या सवाब-पुण्य |
|
कहते रहे वो माज़रा, ........पूछा तो इस निज़ाम से |
जिनसे किया सवाल था, उनसे मिला जवाब क्या |
|
गम ने मुझे सिखा दिया, ..........गैर नहीं बशर कोई |
दिल से जिसे लगा लिया, फिर क्या गदा नवाब क्या गदा-भिखारी |
|
रंग-ए-जहाँ न रौशनी, ........है न ज़िया की आरज़ू |
नूर-ए-ख़ुदा न मिल सका, कोई हसीन ताब क्या ताब-चमक |
|
दिल का पता न होश का, जब से मिली नज़र जवां |
मद से भरे वो दो नयन, कितना नशा, शराब क्या |
|
उनके हसीन ख़्वाब का, फिर से जफ़ा ही हश्र है |
आँखें नहीं रही अगर, कहिये वहां सराब क्या सराब-मृगमरीचिका |
|
दिल में ग़मों के साथ हम, लब पे हँसी लिए रहे |
हम भी तो खुशमिजाज़ है, इससे बड़ा खिताब क्या |
|
अब हो गया तमीज़ का......... उरियां वुजूद देखियें |
आब-ओ-हया न आँख में, फिर ये भला हिज़ाब क्या |
|
तुम न रहे करीब भी,.............तुम न बने हबीब ही |
खुल जो गई ये असलियत,अब के नया नकाब क्या |
|
हमको मिला न तज्रिबा, भटका किये जो दर-ब-दर |
हमसे हयात ने कहा- “मुझसे गजब किताब क्या” |
|
इसको कभी उसे कभी,............रोये कभी हँसे कभी, |
मर भी गए जो दफअतन फिर ये ख़ुशी अज़ाब क्या |
|
------------------------------------------------------ |
Comment
आदरणीय मिथिलेशजी, कमाल ! किस सधे ढंग से ग़ज़ल को निभा ले गये ! मुबारकां जी मुबारकां !
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय समर कबीर जी सराहना और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार
इंटरनेट कनेक्शन पर ओबीओ नहीं खुल रहा है इस समस्या के कारण विलम्ब से जवाब दे रहा हूँ. क्षमा चाहता हूँ. अब नई जुगत मोबाइल इन्टरनेट से लेपटॉप कनेक्ट कर बड़ी धीमी गति वाले इन्टरनेट से जवाब दे रहा हूँ.
आपने नवाब और हमाम दो लफ़्ज़ों पर मार्गदर्शन दिया है. दरअसल इन लफ़्ज़ों को चूंकि ऐसे ही बोलचाल में इस्तेमाल करता हूँ इसलिए चूक हुई है. हमाम के सन्दर्भ में बदलकर मिसरा कुछ यूं कहा है -
अब हो गया तमीज़ का उरियां वुजूद देखियें
आब-ओ-हया न आँख में, फिर ये भला हिज़ाब क्या
कुछ बेहतर हो सके तो मार्गदर्शन का निवेदन है
नवाब का कोई जवाब नहीं सूझ रहा क्योकिं काफिया बदलना पड़ेगा या शेर ग़ज़ल से हटाना होगा
अगले मिसरे में कुछ यूं संशोधन निवेदित है -
इसको कभी उसे कभी,............रोये कभी हँसे कभी,
मर ही गए जो दफअतन फिर ये ख़ुशी अजाब क्या / जां से गए जो दफअतन फिर ये ख़ुशी अजाब क्या
मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ . सादर
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सराहना के लिए हार्दिक आभार
बहुत ही कमाल की ग़ज़ल पढने को मिली - मिथलेश वामनकर जी
मैं तो यही कहूंगा
तेरी प्यारी-प्यारी गजल को किसी की नजर न लगे ----चश्म -ए -बद दूर
बहॉट उम्दा ग़ज़ल
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online