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मेरी बेटी
तेरी खातिर ,
गुब्बारे लाने थे मुझको,
नीले, पीले,लाल,गुलाबी,
हरे,बैंगनी,खूब सजीले
बहुत सुनहरे और चमकीले
गुब्बारों के दाम बहुत थे
पास मेरे पैसे कुछ कम थे
पर
तेरे हिस्से का समय बहुत था....
दूर कहीं परदेस मे बेटी
तेरे जैसे बहुत से बच्चे
अँधियारो से जूझ रहे है
चमक रहे है,बुझ भी रहे है
तेरे हिस्से का समय मै गुड़िया
इन बच्चों में बाँट रहा हूँ
जिससे इनको रंग मिले
समता समानता स्वतंत्रता के
और खिल जाये इनका जीवन
और मै भी खरीद लाऊँ तेरी खातिर
गुब्बारे ही गुब्बारे
जीवन की सब खुशियो के
खूब चमकीले और सुनहरे
ये सब हो जाने पर भी
तेरा ऋणी रहूँगा सदा
मोल कभी भी तेरे समय का
बेटी, नहीं दे पाउँगा
खुद को कैसे समझाउगाँ

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2015 at 9:42pm
बहुत सुन्दर भाव, आदरणीय मनोज कुमार एहसास जी , बधाई, सादर ,

कृपया ध्यान दे...

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