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ग़ज़ल-नूर : आसमां क्या ख़बर नहीं रखता

२१२२/१२१२/२२ (११२)

वह’म है वो नज़र नहीं रखता
आसमां क्या ख़बर नहीं रखता.  
.
वो मकीं सब के दिल में रहता है
आप कहते हैं घर नहीं रखता.
.
है मुअय्यन हर एक काम उसका
कुछ इधर का उधर नहीं रखता.

अपने दर पे बुलाना चाहे अगर
तब खुला कोई दर नहीं रखता.
.
ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है 
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता. 
.
तेरी हर साँस साँस मुखबिर है
तू ही ख़ुद पे नज़र नहीं रखता.
.
दिल ही दिल में हमेशा घुटता है
क्यूँ कोई चारगर नहीं रखता.
.
मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता
.
दिल ये कहता है बोल दूँ उसको
ज़ह्न अगरचे जिगर नहीं रखता.  
.
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 728

Comment

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Comment by वीनस केसरी on May 8, 2015 at 1:40am

आपकी मुहब्बत है ..जर्रे को नवाज़ते हैं ...
मैं भी सीख रहा हूँ
बस आपसे कुछ पहले से ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2015 at 8:16am

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2015 at 8:15am

शुक्रिया आ. वीनस जी 
हर साँस साँस पर अब आपने कन्विंस कर लिया है मुझे 
शेर अब यूँ पढ़िए 
.
जब कि हर एक साँस मुखबिर है 
फिर भी ख़ुद की ख़बर नहीं रखता. 
.
आपकी एक बात पर सख्त ऐतराज़ है ."आप चाहें तो किसी उस्ताद से मशविरा ले लें" .. जिस दिन बहर सीखना शुरू किया था उस दिन online आपके कुछ notes मिले थे जिन्हें प्रिंट कर के फ़ाइल कर के रखे हैं. उसी से पढ़ पढ़ कर कहना सीख रहा हूँ. 
आप ख़ुद को उस्ताद न मानें मैं तो आप ही से सीख रहा हूँ ....वैसे भी छात्र का एकाधिकार है कि वो किसे उस्ताद मानें ..किसे न मानें. एक आ. डॉ ललित कुमार सिंह  सर हैं जिन्होंने "ग़ज़ल ऐसे लिखे"  नाम से क़िताब भी लिखी है. उनसे फ़ेसबुक के माध्यम से चैट बॉक्स में कुछ ज्ञान मिलता रहता था लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो अपनी नई क़िताब में व्यस्त हैं सो फ़ेसबुक अकाउंट डीएक्टिवेट किये हुए हैं.
अब इस मंच के अलावा किससे पूछने जाऊं ...यहाँ पोस्ट ही इसलिए करता हूँ कि आप से  और अन्य गुनीजनों से मार्गदर्शन प्राप्त हो सके. आप सब यूँ हीं राह दिखाते रहिये ..
सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 7, 2015 at 1:08am

भाई जी आपने सुझावों पर विचार किया इसके लिए धन्यवाद

आसमां को अन्य प्रकार से बिम्बित करने पर मुझे ऐतराज़ नहीं है बस जो पता था उसे साझा किया ,,,, और जहाँ तक मुझे पता है आसमां को दुश्मन के लिए आजादी के पहले ही बिम्बित करना शुरू हुआ, ग़ालिब साहब के समय क्या मामला था मुझे नहीं पता ...
फिर भी आपने जो शेर कोट किया है शमीम साहब के शेर में तो ईश्वर को बिम्बित माना जा सकता है मगर ग़ालिब के शेर में आसमां शब्द ईश्वर के लिए प्रयुक्त नहीं लग रहा ...

हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे 
बे-सबब हुआ "ग़ालिब" दुश्मन आसमां अपना.

ख़ुदा का दुश्मन हो जाना ...ये बात अटपटी लगती है ... हाँ राजा या किसी अमीर या ओहदेदार के लिए ये बात सटीक बैठती है ....
आपका मतला मुकम्मल है इसी लिए तो उसकी तारीफ़ भी की थी ...


मुजरिम है सोच-सोच, गुनहगार साँस-साँस

इस मिसरे में सांस सांस प्रयोग को स्वीकार किया जा सकता है मगर आपने अपने शेर में हर शब्द का प्रयोग किया है 
तेरी हर सांस में इंसान की प्रत्येक सांस समाहित है उसके बाद अलग से कोई सांस नहीं बचती इसलिए उसके बाद सांस शब्द के प्रयोग का कोई औचित्य नहीं है
और मैंने भी यही कहा था = तेरी हर साँस के बाद अगले शब्द सांस का क्या औचित्य है

/// दिल ही दिल में घुटना ठीक वैसा है जैसा मन ही मन में चाहना  ///

नहीं भाई जी, ऐसा नहीं है क्योकि दिल ही दिल में घुटना सही जुमला नहीं है आप चाहें तो किसी उस्ताद से मशविरा ले लें ...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 6, 2015 at 3:30pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है नूर साहब। दाद कुबूलें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 2:02pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 1:25pm

आदरणीय नूर जी ..कमाल की एक और शसक्त ग़ज़ल ..

ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है 
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता.....लाजबाब 

मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ 
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता...ताजगी से भरा हुआ ..क्या जबरदस्त सोच 

कोइ भी शेर कमतर नहीं फिर भी ये दो तो मुझे कितने पसंद आये मेरे लिए कहना मुश्किल है हार्दिक बधाई के साथ सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 9:25am

वो ख़ुदा.....शेर अब यूँ पढ़ा जाए 
.
वो मकीं सब के दिल में रहता है 
आप कहते हैं घर नहीं रखता. 
.
इस सोचने के क्रम में एक शेर और बन गया है..उसे भी ऐड किये लेता हूँ.
.
ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है 
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 8:46am

वो का मसअला ऑफिस पहुँच के देखता हूँ :))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 8:39am

ये शेर यूँ हो गया अब 
.
दिल ये कहता है बोल दूँ उसको 

ज़ह्न अगरचे जिगर नहीं रखता.

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