उस तंग कमरे में ,सालों से बीमार चल रहा हरिया रोज मृत्यु की कामना किया करता था I पड़ा पड़ा कभी बहू कभी बेटा ,नाती पोतों को मिलने की गुहार लगाता रहता I उसके जर्जर ,क्षीण होती काया सबके लिए दुखदायी होती जा रही थी ,स्वयं उसके लिए भी I आखिर कार मृत्यु को उस पर दया आ ही गयी ,आ गयी उसको एक दिन लिवा जाने !! लेकिन यह क्या ? दिन रात मृत्यु की कामना करने वाला हरिया ,साक्षात उसे सामने देख गिड़गिड़ाया -" तनिक छोटका बिटवा को देख लेने दियो ,फिर चलत हैं " I
मृत्यु भी मुस्कुरा पड़ी पल भर को -' सच !! जीवन की प्यास कभी नही बुझती !! '
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मीना पाण्डेय
बिहार
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आभार आ Ravi prabhakar जी
अच्छी लघुकथा आदरणीय मीना जी । पुरातन बोध कथा स्मरण करवा दी आपकी इस लघुकथा ने । आभार
सच तो यही है मीना जी ,जीवन की प्यास कभी नहीं बुझती बहुत बढ़िया लघु कथा ,बधाई आपको
आभार आ लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
अपने परिवार के प्रति मोह अंतिम समय तक बना रहता है | सुंदर लघु कथा के लिए बधाई
आभार आ सौरभ पाण्डेय जी
आभार आ Dr Ashutosh mishra जी
आभार आ ओम प्रकाश क्षत्रिय जी
सच !! जीवन की प्यास कभी नही बुझती !!
आदरणीया मीना जी इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सादर
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