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यूं मेरे हाथ मुझ को छुड़ानें न दो,

यूं मेरे हाथ मुझ को छुड़ानें न दो,
बहुत याद आयेंगें हम, हमें जानें न दो.

गर हमें प्यार है, तो फ़िर डर कैसा,
अब कोइ राज़-ए-महोब्बत छुपानें न दो.

तेरी सांसों की महक की है ज़रूरत मुझको,
अब मेरे दिल में किसी और को आनें न दो.

इस तरह रोतें रहोंगे तो भला क्या होगा,
अश्क आंखों में मेरी जान कभी आनें न दो.

कर लो अब तो तुम मेरी महोब्बत का यक़ीन.
तुम मुझे अब और क़समें खानें न दो.

'अमी' तेरे प्यार के रंग में सराबोर है अब
महोब्बत फ़िकी पड़ जायेगी नहानें न दो
-अमि'अज़ीम'

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Comment by अमि तेष on April 4, 2011 at 10:14pm
Thanks Ganesh Sir....
Thanks Vandana Didi...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2011 at 8:41pm

तेरी सांसों की महक की है ज़रूरत मुझको,
अब मेरे दिल में किसी और को आनें न दो

 

बहुत खूब अमितेश जी , सुंदर ग़ज़ल कही है , दाद कुबूल करे |

कृपया ध्यान दे...

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