22 22 22 22 2
शहर ज़रा सा मुझमें भी तो आया है
यही सोच के गाँव गाँव शर्माया है
मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया
किस अँधियारे ने इसको भरमाया है
याराना कुह्रों से है क्या मौसम का
आसमान तक देखो कैसे छाया है
चौखट चौखट लाशें हैं अरमानों की
किस क़ातिल को गाँव हमारा भाया है
सूखी डाली करे शिकायत तो किस को
सूरज आँखें लाल किये फिर आया है
छप्पर चुह ते झोपड़ियों का क्या कहना
हाल पूछने नाला घर तक आया है
किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा
चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है
जिन सोचों की नदी बही है आंगन तक
देख उसे बूढ़ा बरगद थर्राया है
बाट जोहतीं गलियाँ राहें चौबारे
ख़बर मिले , कब भूला वापस आया है
इन पथरीली राहों के उस पार कहीं
कुछ ख़्वाबों ने सच का घर बनवाया है
फिर से देखो हवा हुई है तूफानी
फिर से कोई दीप जलाने आया है
*******************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराजभाईजी, .........................................
............................................................................
............................................................................
............................................................................
सादर
आदरणीय समर भाई , आपका आभार ।
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहरें तो बहुत होंगी लेकिन मै उन्ही बहरों को जानता हूँ , जिनपे मैने ग़ज़ल कही है , वो निम्न हैं
2122 1212 22 /112
1212 1122 1212 22 /112
और तीसरा जो आप अभी पढ़े हैं ॥ सभी ग़ज़लो में ये छूट नही मिलती ॥
आदरणीय कृष्णा भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
आ० अनुज
एक जिज्ञासा कि यह छूट हर बहर में मिलेगी या केवल कुछ खास बहर में i यदि कुछ खास बहर में तो वे कौन सी बहरे हैं . सादर .
किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा
चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है वाह! वाह! वाह!
लाजव़ाब इस शेर से दिल बाग़ बाग़ हो गया!गूंजता रहेगा दिमाक में.......अभिनन्दन आदरणीय गिरिराज सर!
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर ,हर बार की तरह ,सुन्दर रचना ,
किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा
चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है/
जिन सोचों की नदी बही है आंगन तक
देख उसे बूढ़ा बरगद थर्राया है..................वाह , बहुत बहुत बधाई , सादर !
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , इस बहर में , 22 को 112 , 121 , 211 करने की छूट रहती है , बस गेयता बाधित न हो इसका खयाल रखा जाता है । 22 ( फेलुन ) की संख्या आप कितनी भी रख सकते हैं , अंत में ( फा ) 2 आये तो गेयता अच्छी आती है ॥
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online