क्या ये मेरा वही गाँव है
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क्या ये मेरा वही गाँव है
सूरज अलसाया निकला है
मुर्गा बांग नहीं देता है
नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं
ना कौवे की काँव काँव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
दो पहरी सोई सोई है
दिवा स्वप्न में कुछ खोई है
यहाँ धूल में सनी उदासी
चौराहों के थके पाँव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
गुम्बद भी है सूना सूना
मीनारों का है दुख दूना
चौपालों मे बढ़ी सियासत
अब बरगद में कहाँ छाँव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
गोधूली में धूल नहीं है
कोई क्यारी फूल नहीं है
गाँव-गली में शहर चीखता
बीच भँवर में फँसा गाँव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
नदी ताल है सूने सूने
घट पनिहारिन के हैं ऊने
खुद के लाये तूफानों में
पास किनारे फँसी नाव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
फ्रिज टीवी मोबाइल आई
संस्कृति बाहर की समझाई
परंपरायें पूछ रहीं है
क्या ये अपना वही ठाँव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र भाई , गीत की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ॥
बहुत सुंदर रचना ,सर. आज के गाँव में कई परिवर्तन आ चुके है. आधुनिकता ने पाँव जो पसार लिए है गाँव में भी. बधाई सर ,प्रस्तुति पर
आदरणीय नीरज नीर भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार ॥
आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका आभार ॥
आदरणीय श्री सुनील भाई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय समर कबीर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई का हौत शुक्रिया ॥
वाह बहुत सुंदर गीत.... गाँव के बदलते परिवेश को बाखूबी बयान करती हुई ॥ हार्दिक बधाई आदरणीय ।
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