221 212 1 1221 212
बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है
सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है
कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली
लेकिन जो सच थी बात, उठाई हुई तो है
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है
सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा
उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो है
माना कि, फौज आज खड़ी सरहदों पे , पर
दुश्मन के साथ थोड़ी ढिलाई हुई तो है
हिलता नहीं जो संगे ग़रीबी तो क्या ग़लत
सरकार खुद पसीना नहाई हुई तो है
****************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ने गज़ल कहना मुकम्मल कर दिया ! हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया ॥
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । सादर |
आदरणीय गिरिराज सर, बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है
सूरज से आँखें उसने मिलाई हुई तो है......... बेहतरीन मतला (टांग अड़ाने का सुन्दर प्रयोग)
नक्शा बता रहा है हरिक शक़्ल का यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है........ बेहतरीन शेर
बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली
लेकिन जो सच थी बात, उठाई हुई तो है.......... लहजे का तेवर देखते ही बनता है .... वाह .. बहुत खूब सर
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है ................. हासिल ए ग़ज़ल
सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा
उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो है...... ये भी खूब कही
माना कि, फौज आज खड़ी सरहदों पे , पर
दुश्मन के साथ थोड़ी ढिलाई हुई तो है............ वाह वाह
हिलता नहीं जो संगे ग़रीबी तो क्या ग़लत
सरकार खुद पसीना नहाई हुई तो है....... ये कमाल का व्यंग्य है
बहुत बहुत बधाई सर .....सादर
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है
सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा
उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो है
लाजवाब!आदरणीय इस दो शेर पे तो दिल झूम झूम गया!
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है ---वाह्ह्ह बहुत शानदार शेर
बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीय गिरिराज जी ,हार्दिक बधाई
आदरणीय श्री सुनील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय विजय भाई , आपकी उपस्थिति हमेशा मुझे संबल प्रदान करती है , सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
पाठकों से अनुरोध है कि , गज़ल के दूसरे शे र को निम्न अनुसार पढ़ने की कृपा करें ---
नक्शा बता रहा है हरिक शक़्ल का यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online