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चलते चलते ……

1.

एक कतरा
देर तक
बहते बहते
कपोल पर ही सो गया
शायद
अभी इंतज़ार बाकी था

2.

ये अलस्सुब्ह
किसकी नमी को छूकर
बादे सबा आई है
खुली पलक का
कोई ख़्वाब
सिसकता रह गया शायद

3.

तेरे हर वादे पे
यकीं करता रहा
पर तुझे यकीं न आया
मैं हर लम्हा तुझपे
सौ सौ बार मरता रहा
मेरी मौत को भी तूने
मेरी नींद समझा
नज़र भर के भी तूने
न देखा मुझको
गो चहरे से कफ़न
बार बार हटता रहा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 7:13pm
कतरा एक देर तक बहते कपोल पर ही सो गया शायद
खुली पलक का कोई ख़्वाब सिसकता रह गया शायद ॥
क्या बात है , आदरणीय सुशील सरना जी , बधाई , बहुत ही खूबसूरत , सादर।
Comment by Sushil Sarna on March 23, 2015 at 6:46pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी मैं आपके स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने मेरी अनुपस्थिति को महसूस किया है। आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 23, 2015 at 6:37pm
Comment by Sushil Sarna on March 23, 2015 at 6:37pm
Comment by Sushil Sarna on March 23, 2015 at 6:36pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 4:26pm
आदरणीय सरना जी सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 2:28pm

कहा थे आ० सरना जी

आपकी ऐसी सुनहरी कविताओ को मिस किया हमने. सादर .

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