For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मारो बम गोली या पत्थर कलम नहीं मिटती

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

 

माना मिट जाते हैं अक्षर कलम नहीं मिटती

मारो बम गोली या पत्थर कलम नहीं मिटती

 

जितने रोड़े आते उतना ज़्यादा चलती है

लुटकर, पिटकर, दबकर, घुटकर कलम नहीं मिटती

 

इसे मिटाने की कोशिश करते करते इक दिन

मिट जाते हैं सारे ख़ंजर कलम नहीं मिटती

 

पंडित, मुल्ला और पादरी सब मिट जाते हैं

मिट जाते मज़हब के दफ़्तर कलम नहीं मिटती

 

जब से कलम हुई पैदा सबने ये देखा है

ख़ुदा मिटा करते हैं अक़्सर कलम नहीं मिटती

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 25, 2015 at 5:57pm
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ गिरिराज जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 25, 2015 at 5:57pm
बहुत बहुत शुक्रिया परी जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 25, 2015 at 5:56pm
कृष्ण मिश्रा जी एवं डॉ गोपाल नारायन जी, मैं आपकी बातों से पूरी तरह असहमत हूँ। इन पंक्तियों से न तो कोई भ्रामक सन्देश जा रहा है न मैं अतिरंजित हुआ हूँ। ध्यान दें मैंने "ईश्वर का घर" नहीं कहा "ईश्वर का दफ़्तर" कहा है। उम्मीद है "घर" और "दफ़्तर" के बारीक अंतर से जो अर्थ उत्पन्न हो रहा है आप उस तक पहुँचेंगे। मक़्ते में "ख़ुदा मिटा करते हैं" का प्रयोग किया गया है जो बहुवचन है। ध्यान दें ख़ुदा एक ही होता है और वो कभी नहीं मिटता। लेकिन जो अपने को ख़ुदा समझा करते हैं वो अक़्सर मिट जाया करते हैं। आशा है एकवचन और बहुवचन के अंतर से जो अर्थ उत्पन्न हो रहा है आप उस तक भी पहुँचेंगे। फिलहाल मुझे ग़ज़ल में किसी सुधार की आवश्यकता नहीं महसूस हो रही है।
Comment by Nirmal Nadeem on February 25, 2015 at 5:43pm

Priy Mitr,

Agar Khuda/ishwar ko ghazal me aise prayog na kare to behtar hoga. mujhe ummed hai k aap meri baat samajh rahe hoge. aapki koshish saraahneey hai. Dhanyawaad.

Comment by maharshi tripathi on February 25, 2015 at 5:30pm

आपकी सुन्दर गजल पर आपको बधाई आ.धर्मेन्द्र कुमार जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2015 at 5:25pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हमेशा की तरह एक बहुत कठिन रदीफ को बहुत आसानी से निभा लिया है आपने । पूरी गज़ल बहुत खूब हुई है । 

जितने रोड़े आते उतना ज़्यादा चलती है

लुटकर, पिटकर, दबकर, घुटकर कलम नहीं मिटती -- बहुत सुन्दर !! दिली मुबारकबाद कुबूल करें ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 3:58pm

प्रिय धर्मेन्द्र जी

बहुत अच्छी रचना की है आपने  i बस आखिर के दो बन्दों में आप कुछ अतिरंजित हो गए  i या तो ईश्वर को मानो  मत और मानते हो तो फिर उसका दफ्तर कैसे बंद हो सकता है i यही बात खुदा के सन्दर्भ में आख़री बंद में है  i कविता के भाव क्षणों में ऐसा हो जाता है i आप का श्रम बेकार नहीं है i i सादर i

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:37pm
पंडित, मुल्ला और पादरी सब मिट जाते हैं

मिट जाते ईश्वर के दफ़्तर कलम नहीं मिटती
बिलकुल सही कलम नही मिटती वाह क्या भाव हैं ग़ज़ल के उम्दा
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 1:18pm

पंडित, मुल्ला और पादरी सब मिट जाते हैं

मिट जाते ईश्वर के दफ़्तर कलम नहीं मिटती

 

जब से कलम हुई पैदा सबने ये देखा है

ख़ुदा मिटा करते हैं अक़्सर कलम नहीं मिटती

मुझे खेद है इन पंक्तियों पर..बहुत सुधार की आवश्यकता है..मै आपका भाव समझ रहा हूँ पर..आप इस गज़ल के माध्यम से जो कहना चाहते है...उसको सही तरीके से प्रेषित नही कर पा रहे है...इन पंक्तियों से बहुत ही भ्रामक सन्देश जाने की सम्भावना है..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service