For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आचरण से ध्यान जादा डील में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122      212
****************************
दोष  ऐसा  आ  गया  अब  शील में
फासले  कदमों  के  बदले  मील में
***
भर लिया तम से मनों को इस कदर
रोशनी   भी   कम   लगे  कंदील  में
****
देह  होकर   देह   सा   रहते  नहीं
टाँगते  खुद  को वसन से कील में
****
युग  नया  है  रीत भी  इसकी नई
आचरण  से  ध्यान  जादा डील में  /       डील-दैहिक विस्तार
****
अब  बचे  पावन  न  रिश्ते दोस्तो
तत तक बदले है खुद को चील में
***
भय सताता क्या  तुम्हें भी दाग का
श्वेत  चादर  जो   डुबोते   नील  में
***
देखता  हूँ  दुर्जनों   को  भय नहीं
राज  गहरा  शासकों  की ढील में
***
चह तो थी वो  सिखाए  शील कुछ
संत  ही पर  रम गए अश्लील में
***
छटपटाता  जब  वनों  पर  चोट हो
हमसे  जादा  सभ्यता  है  भील में
***


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 19, 2015 at 11:14am
दोष ऐसा आ गया अब शील में
फासले कदमों के बदले मील में ॥
सुन्दर, सभी शेर सुन्दर हैं, आदरणीय लक्षमण धामी जी, बधाई, सादर।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 10:55am

आ0 भाई हरिप्रकाश जी गजल का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 10:54am

आ0 भाई खुर्शीद जी , गजल पर उपस्थिति देकर मान बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 10:08am

छटपटाता  जब  वनों  पर  चोट हो
हमसे  जादा  सभ्यता  है  भील में

आदरणीय लक्ष्मण साहब ,बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 8:24am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुन्दर प्रस्तुति ,इन पंक्तियों पर विशेष ध्यान अटकता है .....//भय सताता क्या  तुम्हें भी दाग का
श्वेत  चादर  जो   डुबोते   नील  में//.....वाह

//छटपटाता  जब  वनों  पर  चोट हो
हमसे  जादा  सभ्यता  है  भील में//....सुन्दर 

 हार्दिक बधाई ! सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service