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वो मुझे देखकर मुस्कराती रही..

मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,

वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,
जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।

मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां
बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,
बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया
देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,
दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे
रोशनी साथ मेरा निभाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...

प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी
एक सागर को क्या प्यास होगी भला,
हां अगर तुम धरा हो तो बरसूंगा मैं
फिर संभालो मुझे और मेरा जलजला,
उसको झूला जो सावन का अच्छा लगा
देर तक फिर पसीना बहाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...

अब तलक संगदिल ही समझता था मैं
आज छूकर लगा तुम हो नाजुक कली,
आईने की तरह मुझको देखा करो
मन को भाये तेरा रूप ये संदली,
कृष्ण के प्रेम में डूबकर राधिका
गीत तेरे 'अतुल' गुनगुनाती रही...।।  

                      मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:41pm


आदरणीय उमेश जी, आपका बहुत—बहुत आभार

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:40pm

आदरणीय राम नरायन सर, कोशिश को सराहने और हौसला देने के लिए आभार आपका— सादर

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:39pm

आदरणीय म​हर्षि भाई, आपका बहुत—बहुत आभार—  सादर

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:38pm


आदरणीय अजय भाई साहब, हौसला अफजाई और आशीष देने के लिए आभार— सादर

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:37pm

आदरणीय विजय शंकर सर, आशीष देने के लिए आभार। सादर— अतुल

Comment by Gopal Maurya on February 17, 2015 at 2:00am

वाह .....अद्भुत


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:07pm

सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई , भाई अतुल जी ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:09am

आदरणीय अतुल कुशवाहा जी सुन्दर रचना है , बधाई प्रेषित ! सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 7:29pm

अतुल जी

आपने सुन्दर भाव दर्शाए हैं i सस्नेह i

Comment by umesh katara on February 13, 2015 at 7:20pm

बहुत सुन्दर गीत

कृपया ध्यान दे...

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