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बसर तो प्यार से करते - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1212   1122  1212     22

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किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस  की  भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती

**

बचाना  यार  चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती

**

बसर तो प्यार से करते वतन में हम  दोनों
धरम  के नाम की गर आरियाँ  नहीं चलती

**

चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती

**

बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि बदकारियाँ नहीं चलती

**

नगर तो सबको है मालूम खत नहीं लिखता
मगर क्यूँ  गाँव  में  हलकारियाँ नहीं चलती

******

यल्गारी - आक्रमण, बदकार-चरित्रहीन,
बदकारी-चरित्रहीनता

**************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 9:44am

क्या बात है !! आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहु त सुन्दर गज़ल कही है , हार्दिक बधाई ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on February 7, 2015 at 11:33pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी  जी क्या बात कही है ..किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस  की  भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती......सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई !

Comment by Samar kabeer on February 7, 2015 at 10:54pm
जनाब लक्ष्मण धामी जी,आदाब,आपकी ग़ज़ल का ये शैर बहुत पसंद आया दाद क़ुबूल करें
"बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती"
बहुत ख़ूब|
Comment by ajay sharma on February 7, 2015 at 10:47pm

बचाना  यार  चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती

**kya baat sir ji 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 7, 2015 at 9:53pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी इस बार के तरही मुशायरे के काफिया रदीफ़ पर बेहतरीन ग़ज़ल कही है, हार्दिक बधाई स्वीकार करे. 

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