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एक सपनों की दुनियाँ में ---- डॉ ० उषा चौधरी साहनी

यूँ ही बस यूँ ही लगता है , 
कभी इस दुनियाँ से निकल जाऊं , 
दूर  बहुत दूर चली जाऊं , 
किसी और दूसरी दुनियाँ में खो जाऊं, 
सपनों  दुनियाँ में चली जाऊं , 
आँखें मूँद लूँ ,  सपने देखूं , 
खूब ढेर  से  सपने देखूं , 
वो चाहे झूठे  ही क्यों न हों , 
कितने ही झूठे , पर देखूं , 
हँसू , खुद पर हँसू , इतराऊँ , 
मुस्कुराऊँ , धीरे से मुस्कुराऊँ, 
अपने में ही  खो जाऊं , 
हक़ीक़त की इस दुनियाँ में 
बहुत बहुत देर से लौटूं , 
हकीकत ही कितनी हकीकत है , 
कितना अफ़साना है , 
सब झूठ है , सब एक फ़साना है
हर झूठ कहाँ बेगाना है , 
हर सच , किसने जाना है।  
वो भी तो  कितना अंजाना है. 
अच्छा है ,किसी  सुहाने से 
सपने में ही खो जाना , 
हकीकत की दुनियाँ से दूर ,
 बहुत दूर चले जाना 
दुनियाँ की दुनियाँ छोड़ कर , 
अपनी दुनियाँ बनाना ,
जब जी चाहे , 
उसी में चले जाना , 
उसी में चले जाना  । 
 
// मौलिक एवं अप्रकाशित //
 

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Comment by Shyam Narain Verma on February 6, 2015 at 9:50am

लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारेँ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 9:01am
अपने अपने स्वप्न सभी के होते हैं, अपना अपना कल्पना जगत भी,
जो यथार्थ है वह भी कितना सच है, मनीषियों ने उसे भी भ्रम ( माया ) ही बताया है ,
कल्पनायें वही अच्छी है जो सुकून दें ,
कुछ सोचने को बाध्य करती है आपकी यह रचना , बधाई , आदरणीय डॉ o उषा चौथरी साहनी जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 3:40am

फैंटेसी की अजब गज़ब दुनिया ... बिलकुल अलग थलग दुनिया.... जैसे मन कहे अरे.... बिलकुल समझ से परे...... वैसे तो बात समझ नहीं आई .... किन्तु इस प्रयास पर और प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 6, 2015 at 1:42am
!!!!!......???????

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