सुनते आये हैं, सारी नज़ाकत
कायनात को हम नारियों से मिली है ,
बीर बहूटी को मखमल ,
गुलाब को लाली, हमीं से मिली है ,
कायनात खुद कहीं-कहीं बेइंतहा सख्त है ,
चट्टान है, आंधी है , धूल है , तूफ़ान है,
फिर भी गुलाब हैं, तितलियाँ हैं, चाँद है,
चाँदनी है, ठंडी हवाएँ हैं , नदियों में चढ़ाव है.
ये कठोर कायनात की ही करामात है ,
हमारी मासूमियत पर रोज़ ये ग्रहण लगाता कौन है.
हमारी मासूमियत हमसे चुराता कौन है,
बचपन से हमको हरदम डराता कौन है,
ये चेहरे पे…
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 24, 2015 at 10:45am — 18 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 22, 2015 at 9:35am — 9 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 5, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
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