For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“ हे. भगवान..बस! एक पोते की कामना थी,  वो भी पूरी नहीं हो पाई इस बार. तीन-तीन पोतियों की लाइन लग गई ” अपनी बहु के कमरे से बाहर, खले की ओर जाते हुए मन में बडबडा ही रही थी, कि

“ माँ!! मैं बाजार जा रहा हूँ, कुछ लाना हो बता दो ” बेटे ने पूछा

“ हाँ! बेटा.. गुड़ ले आना, वो बूढी गाय न जाने कब जन जाए, अब की बार बछिया ले आये तो आगे भी घर का दूध मिल जाया करेगा “

      जितेन्द्र पस्टारिया

   (मौलिक व् अप्रकाशित)    

Views: 811

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 8:09pm

सच कहा आपने ,आजकल लाभ के सिवाय कहीं कुछ सोचने की भी मानवता बाक़ी नही है आदरणीया छाया जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थति व् सराहना हेतु आपका आभारी हूँ.

सादर!

Comment by Chhaya Shukla on February 5, 2015 at 7:45pm

आदरणीय सच्चाई परोस दी आपने
जब जहां से लाभ बस वही हो |
बाकी दया क्षमा मानवता जैसे देवी भाव का लोप हो चुका है |
आपने इस लघु कथा के माध्यम से समाज की सही तस्वीर खिंची है |
बधाई आपको !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 7:32pm

आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आभारी हूँ , आदरणीय राम भाई.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 7:28pm

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका आभारी हूँ, आदरणीय अनुराग जी.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 7:27pm

आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया व् लघुकथा की सराहना, हमेशा मनोबल को दो गुना कर देती है आदरणीया राजेश दीदी. स्नेहिल आशीर्वाद यूहीं बनाए रखियेगा.

सादर!

Comment by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 7:26pm
उम्दा भाव आदरणीय भाई।।बधाई आपको
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 7:22pm

आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता प्रदान करती हैं आदरणीय हरिप्रकाश जी. आपका हार्दिक आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 7:19pm

लघुकथा पर आपकी सारगर्भित पंक्तियों हेतु आपका हार्दिक आभार, आदरणीया सविता जी

सादर!

Comment by Anurag Goel on February 5, 2015 at 5:35pm

दोगले जीवन कीस्वार्थपरता से ऊपर नहीं निकल प् रहे हम लोग. सुन्दर भाव बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 5:06pm

जो स्थति इंसानों में बालिकाओं  की है वो ही गाय के बछड़ों की है डेरी पर तो मेल बच्चे को दूध भी नहीं देते और वो इसी तरह भूखा मर जाता है इंसान सच में स्वार्थ में कितना अँधा हो गया है संवेदनाएं तो खत्म ही हो चुकी हैं ,इस  तुलनात्मक स्थिति को बखूबी अंजाम दिया है लघुकथा ने हार्दिक बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर जीतेन्द्र भैया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service