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गजल-लोग अब आपका बोलते है मुझे!

212 212 212 212

आपके नाम से टोकते है मुझे!
लोग अब आपका बोलते है मुझे!!

रोज में इक नजर देखते भी नहीं!
रात में चाँद से पूछते है मुझे!!

जख्म के पेड को फिर हरा कर चले!
किस तराजू में वे तोलते है मुझे!!

मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!
आज तक भी कई कोसते है मुझे!!

नाम दिल से मिटा तो दिया पर सनम!
दर्द बेघर हुए घूरते है मुझे!!

लगता है सांस दो चार ही रह गयी!!
जिस नजर से सभी देखते है मुझे!!

पूछ 'राहुल' उन्हें आज क्या चाहिए!
रोज दर रोज जो बाँटते है मुझे!!

मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment by Rahul Dangi Panchal on January 21, 2015 at 1:21pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप गुनीजनो का बस यूं आशिर्वाद मिलता रहे! सादर धन्यवाद!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2015 at 1:06pm

दागी जी

अच्छी गजल  उभर कर आई  है i

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 21, 2015 at 10:53am
आदरणीय Shyam Narain Verma जी शुक्रिया
Comment by Shyam Narain Verma on January 21, 2015 at 10:52am
सुन्दर गज़ल हेतु बधाई
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 10:10pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी आप जैसे गुनीजनो की प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है कि कब आप आकर मार्ग दर्शन करें और हम कुछ आगे बढें! आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सफल हुई! सादर धन्यवाद स्वीकार करें!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2015 at 10:05pm

वाह वाह राहुल भाई बहुत खूब सुन्दर ग़ज़ल हुई है दिल से दाद कुबूल करें 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 10:00pm
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी हौसला अफजाई हेतु आपका दिल की गहराईयों से शुक्रिया!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 9:59pm
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी सादर धन्यवाद!
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2015 at 9:53pm
मनभावक , सुन्दर ग़ज़ल , प्रशंसनीय , बधाई आदरणीय राहुल जी , सादर
Comment by Hari Prakash Dubey on January 20, 2015 at 9:50pm

आदरणीय राहुल जी क्या बात है..... मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!..आज तक भी कई कोसते है मुझे!! बहूत खूब ,हार्दिक बधाई !

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