सुख-दुःख तो आते जाते हैं...................................
सुख-दुःख तो आते जाते हैं, राही मत घबरा जाना रे !
जीवन की गहरी नदियाँ में, हँसकर पतवार चलाना रे !
हमने कुछ देखी रीत यहाँ,..................................
हमने कुछ देखी रीत यहाँ, श्रम से ही सब कुछ मिलता है !
ईमान –धरम के काँटों में, तब फूल मुकद्दर खिलता है !
दौलत तो आनी जानी है.................................
दौलत तो आनी जानी है, ना मन इसमें उलझाना रे !
जीवन की गहरी नदियाँ में, हँसकर पतवार चलाना रे !
ये पाप - पुण्य है खेल यहाँ,..................................
ये पाप - पुण्य है खेल यहाँ, जो करता है सो भरता है !
जो सत की राह चले वो तो, इस भवसागर से तरता है !
सारे बंधन हैं स्वप्न यहाँ..................................
सारे बंधन हैं स्वप्न यहाँ, मत जीवन व्यर्थ गवाँना रे !
जीवन की गहरी नदियाँ में, हँसकर पतवार चलाना रे !
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
यथार्थ को उजागर करती इस भक्तिमयी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय Hari Prakash Dubey जी।
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