सोचता हूँ मैं ,तुम कौन हो ?
सखी हो ,ईश्वर हो,
तुम मेरा प्यार हो,
तुम मेरा संसार हो !
करुणा हो, दुलार हो,
प्रेम की पुकार हो ,
तुम जीवन-आधार हो !
जीवन हो, स्पन्दन हो,
साँसों का गुंजन हो ,
तुम मेरा चिंतन हो !
हिम्मत हो जोश हो,
शक्ति का श्रोत हो,
प्रेम से ओत-प्रोत हो !
गगन हो , सर्जन हो,
सृष्टी का वरदान हो,
तुम मेरा अभिमान हो !
सरल हो , सुबोध हो,
स्पष्टता का बोध हो,
जीवन का अनुरोध हो !
सर्दी की धूप हो,
गर्मी की छावं हो,
अपना वाला गाँव हो !
तुम मेरा मृदुभाव हो
तुम मेरा स्वभाव हो
तुम मेरा प्रभाव हो !
तुम मैं हूँ , मैं तुम हो !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत सुन्दर कथ्य और प्रवाह युक्त कविता पर ढेरों बधाईयाँ आदरणीय हरिप्रकाश जी.
हरि प्रकाश जी
स्वयं को अनूठे ढंग से आपने रूपायित किया है i आपको बधाई i
wah wah wah aur kya kah sakta hoo .............
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिल जाती है तो लगता है आशीर्वाद मिल गया है ! सादर धन्यवाद !
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