For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( ग़ज़ल ) कोई ये कहे कैसे , मैं ही था गलत यारों - ( गिरिराज भंडारी )

212  1222     212    1222

क्या हुआ है रातों में, झुरमुटों से पूछो तुम

रो रहीं हवायें क्यूँ , डालियों से पूछो  तुम

 

ग़ायबाना भौंरों  के , फूल  क्यूँ   अधूरे हैं    --  ग़ायबाना - अनुपस्थिति में

सच तुम्हें बतायेंगीं , तितलियों से पूछो तुम

 

क्या हुआ है चंदा को, क्यूँ नज़र नहीं आता

ये चकोर क्या जाने, बदलियों से पूछो तुम

 

कोई ये कहे कैसे , मैं ही था गलत यारों

गोलियाँ चलीं कैसे , घाटियों से पूछो तुम

 

बे सदा  रहें तो क्यों , रिश्ते टूट  जाते हैं

दम ब दम बढ़ीं कैसे , दूरियों से पूछो तुम

 

बे गरज़ हक़ीकत अब , बोल कौन पाता है

तल्ख़ियाँ सहन हों तो , आइनों से पूछो तुम  

 

उम्र मेरी कितनी है , दर्द है कहाँ मुझको

किस तरह यहाँ पहुँचा , सीढ़ियों से पूछो तुम

**************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 1034

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2015 at 11:28am
हा हा हा भौरों वाले अशआर में आपने बह्र निभाने में छोटी त्रुटी की थी मैंने सुझाव में और बड़ी त्रुटी कर दे मेरा सुझाव पूरा बे बह्र था। आपने अब दुरुस्त कर लिया शेर। उम्दा शेर हो गया। बधाई
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2015 at 10:23am
सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2015 at 8:24am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपने मेरा दिल जीत लिया , दुबारा मेरी ग़ज़ल पर आके । भौरों वाला मिसरा तो बेबहर है । लेकिन आपका सुझया मिसरा भी बेबहर ही है -- आज बिन/ 212 ,  भौरों के/ 222 ,   फूल क्यूं/ 212,  अधूरे है/ 1222  इसे मै सुधार अपने हिसाब से सुधार लूंगा , आपकी दूसरी सलाह वैस के वैसे स्वीकार कर रहा हूँ । आपकी सलाह और सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2015 at 8:08am

आदरणीय राहुल भाई , आपकी इनायतों का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2015 at 8:03am

आदरणीय गुमनाम भाई , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2015 at 8:03am

आदरनीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार । 

भौंरो वाला मिसरा , आदरणीय बेबह्र है , उसमे सुधार कर रहा हूँ । ध्यान दिलाने का शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2015 at 8:01am

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 7:05am
आदरणीय गिरीराज जी बहुत सुन्दर गजल वाह!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2015 at 3:53am

आय हाय ...कमाल है गिरिराज सर... बह्र पे तो ध्यान ही नहीं गया था.... अभी फिर से पढ़ी तो गुनगुनाते हुए झूम गया हूँ. ये मेरी पसंदीदा बह्र में से एक है ... इस बह्र को हमेशा गुनगुनाते रहता हूँ. आपकी ग़ज़ल का सही आनंद अभी ले पाया ... आपकी ग़ज़ल पर सुझाव दिए बिना दिल को ठंडक नहीं मिलती इसलिए जहाँ मुझे गुनगुनाने में दिक्कत हुई और बह्र निभाई की अड़चन लगी वहां के लिए सलाह आपको उचित लगे तो ...

भौंरों  बिन  बाग़ों  के  फूल  क्यूँ अधूरे हैं.............. साथ/आज बिन भौरों के, फूल क्यूं अधूरे है 

सच तुम्हें बतायेंगीं , तितलियों से पूछो तुम......... सच तुम्हें बतायेंगीं , तितलियों से पूछो तुम

उम्र मेरी कितनी है , दर्द है कहाँ मुझको.........उम्र मेरी कितनी है , दर्द है कहाँ मुझको

कैसे मैं चढ़ा ऊपर , सीढ़ियों से पूछो तुम...... किस तरह यहाँ पहुँचा, सीढ़ियों से पूछो तुम

बाकी अशआर कमाल, आहंगखेज़ और बेहतरीन है.  दिल से दाद कुबूल कीजिये 

इस बह्र को गुनगुनाने के लिए मैं दाता फिल्म के विदाई गीत "बाबुल+का ये घर गोरी, कुछ दिन+का ठिकाना है" की धुन का प्रयोग करता हूँ. इसमें बाबुल का को बाबुल्का और कुछ दिन का को कुछ दिन्का गाकर बह्र की लय बना लेता हूँ.सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 10:49pm
आदरणीय गिरिराज सर बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service