“अरे क्या हुआ ये भीड़ कैसी है, कोई मर गया है क्या ?”
“हाँ यार वो साहब का नौकर, अरे वही यार जो साहब के घर के सारे काम करता था, झाड़ू - पोछा, चूल्हा-चौका ,बर्तन माँजने से लेकर सब्जी-भाजी लाने तक....जिसे साहब गाँव से लेकर आये थे, कहते थे चपरासी रखवा दूंगा डिपार्टमेंट में !”
“ओह वो गूंगा, वो तो बड़ा ही भला था और ठीक-ठाक भी, कैसे मरा ?”
“दोस्त, सब कह रहें हैं आत्महत्या कर ली, पर यार तू बताना मत किसी को, मेमसाहब की चेन चोरी हो गयी थी, कल रात पुलिस भी आई थी, बहुत मारा उसे, पर वह गूंगा नहीं था, उसे अरे-माई, अरे-माई, चिल्लाते हुए मैंने सुना था !”
अच्छा ..कुछ मिला क्या उसके पास ?
“हाँ, साहब का दिया हुआ एक कुरता पायजामा और एक गमछा और उसके माँ- बाप का दिया नाम, ‘कलुआ’ !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर , उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार , लगता है आदरणीय " बागी जी " की डांट रुपी दवा असर कर रही है ..हा .हा ...! सादर प्रणाम !
गरीब और असहाय लोगों पर बड़े लोगों के अत्याचार का यस सिलसिला अनवरत जारी है | और समाज एवं सत्ता पर भी सक्षम ही काबिज है जो ऐसे बेहद मार्मिक खबरें पढ़कर चुप रहते है | सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई श्री हरिप्रकाश दुबे जी
बहुत सुन्दरता से मार्मिक चित्रण. बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , सक्षम का नीरीह के ऊपर अत्याचार का बहुत मार्मिक वर्नन किया है आपने । लघुकथा के लिये आपको बहुत बधाइयाँ ।
बेहतरीन चित्रण लघुकथा के माध्यम से समाज में ब्याप्त बुराई को उभारने की कोशिश अच्छी है
बेहद कसे शब्दों में निरीह गरीब की व्यथा को अभिव्यक्त किया भाई जी ,बधाई इस सफल लघुकथा पर
वाह खूब ,,,,,,,,,, बहुत खूब चित्रण किया है एक गरीब का जिसके पास अपने आप को बेगुनाह साबित करने का एक ही रास्ता नज़र आता है ,,,,,, क्योंकि उसे पता है इल्जाम मेरे ही सर आएगा
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी सफल लघुकथा .... बहुत बहुत बधाई
आ० हरि प्रकाश जी
लघु कथा की नब्ज पकड़ ली आपने i बहुत बहुत बधाई i
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