अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !
सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !
सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !
परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!
निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !
परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं !
अनेकता में एकता की शान एक–एक है !
कुर्बान हिन्द के लिए कि जान एक–एक है !!
रहीम और राम संग-संग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
अच्छे दिन लिए , नया प्रभात आ गया !
नवीनता प्रबुद्ध्ता का, शंखनाद छा गया !
किरण-किरण प्रकाश से,प्रदीप्त भाषमान है !
दिव्यता–भरित धरा, निर्भीक आसमान है !!
हस्त में अभय ध्वजा, तरंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
इक्कीसवी सदी सुखद, बसन्त हो गया चमन !
कली-कली पराग से, सनद्ध हो गया पवन !
प्रसून प्रेम से भरा, प्रसन्न हो गया सुमन !
भवरुता-भरित विमल , विश्व भारती भवन !!
मैं डोर हूँ ,अज़ान,तू पतंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
पुनश्च ,
पंच चामर के राजना विन्यास में एक जगण छूट गया है i विन्यास इस प्रकार होगा -(जगण +रगण +जगण +रगण+जगण + गुरु ) अर्थात 1 2 1 , 2 1 2, 1 2 1 , 2 1 2, 1 2 1 , 2 /// // सादर i
आदरणीय हरि प्रकाश जी
पंच चामर मात्रिक छंद नहीं है i यह वर्णिक वृत्त है i इसमें यति (8,8) वर्णों पर होती है रचना विन्यास (जगण +रगण +जगण +रगण+ गुरु ) अर्थात 1 2 1 , 2 1 2, 1 2 1 , 2 1 2, 2 होता है i जो उदाहरण मैंने दिया था उसे फिर से देख लें i इस रचना का अब और परिष्कार न करे इससे उसकी मौलिकता नष्ट हो जायेगी i भविष्य में पंच- चामर में अवश्य रचना करिएगा i आप में सामर्थ्य है हम सब उसकी बानगी देखना चाहते हैं i शिव तांडव स्त्रोत भी पंच चामर में ही है i सादर i
नया नया दिवस लिए , नया प्रभात आ गया
शहीद हिन्द के लिए कि जान एक–एक है !
नए नए दिवस लिए , नया प्रभात आ गया !
कि दिव्यता–भरित धरा, निर्भीक आसमान है !!
भविल से -भरित विमल , कि विश्व भारती भवन !! .......भविल-वैभवशाली
इसके अलावा मैं निर्भीक के लिए स्पष्ट नहीं हूँ शेष गुनिजन बताएँगे ... आपने बड़ी मेहनत से रचना को संवारा है. संशोधन के बाद रचना निखर गई है. छंद के द्वार में प्रवेश हो गया. शुभकामनायें आदरणीय हरिप्रकाश जी .. सादर
आदरणीय राहुल जी आपका रचना पर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार !
आपके सुझाव के अनुसार कुछ मात्रा परिवर्तन कर रचना पुनः प्रस्तुत है आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर कृपया एक बार पुनः दृष्टी डाल दीजियेगा, सादर धन्यवाद !
आदरणीय मिथिलेश जी , रचना सुधार के साथ पुनः प्रस्तुत है ! सादर धन्यवाद !
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई स्वीकार करे. आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ने बड़ी अच्छी बात कही है पञ्च चामर छंद में ही आपने लिखा है देखिये एक बार इस तरह पढ़ कर -
अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !
सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !
सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !
परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!
निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !
परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं !
अनेकता में एकता की शान एक–एक है !
कुर्बान हिन्द के लिए कि जान एक–एक है !!
रहीम और राम संग-संग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
जो बोल्ड शब्द है उन्हें ही थोड़ा सा परिवर्तित किया है बाकी आपकी रचना पञ्च चामर छंद में ही है सादर
आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है. आप छंद अच्छा लिखते है आपको पहले भी निवेदित कर चुका हूँ. शेष पद भी ऐसे ही संशोधित कर लीजिये... आनंद आ जाएगा ... पुनः इस दिल जीतने वाली रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
हरि प्रकाश जी
बहुत उम्दा भाव भरी रचना i यह पंच चामर छंद के इतना निकट है कि मुझे आश्चर्य होता है आपने छंद पर प्रयास क्यों नहीं किया i ऐसी रवानी तो उस छंद में ही मिलती है i आप देखिये --- हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रकाशमुज्वला स्वतंत्रता पुकारती --------------- सादर i
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