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मैं जब भी ठोकरें खाता हूँ नया मुकाम मिलता है....................

मैं जब भी ठोकरें खाता  हूँ नया मुकाम मिलता है
तजुर्बे का चहेरा बनाकर भगवान मिलता है


तसल्ली देती हैं पुरानी कहावते अब तो
सब्र का हर एक को ईनाम मिलता है


सियासत ने तो कर दिये, बेकारो के भी तुकढे
इन में भी अब हिन्दु , मुसलमान मिलता है


पढ़  लिख कर कारखानें भी तो जा नही सकते
यहाँ भी बस मजदुरों को ही काम मिलता है


बडे अरमानो से भेजा था वालिद साहब ने दिल्ली
देखते है कब तलक एहतराम मिलता है
                                                                    -अमि'अजीम'

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Comment by अमि तेष on March 14, 2011 at 11:27pm
Thanks Ganesh Sir..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2011 at 11:24pm
पढ़  लिख कर कारखानें भी तो जा नही सकते

यहाँ भी बस मजदुरों को ही काम मिलता है,

 

बहुत खूब , सुंदर कहन , अच्छी ग़ज़ल , बधाई कुबूल करे |

Comment by अमि तेष on March 14, 2011 at 11:12am
Thanks विवेक मिश्र 'ताहिर' jee and Rana Pratap Singh jee...

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