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हुई क्‍यों दूर दिल से मैं मिले फुरसत बता देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना

बनी दुल्‍हन चली आई सजन मैं साथ में तेरे
करोगे प्‍यार मुझको तुम यही अरमान थे मेरे
मगर टूटे सभी अरमा जला दिल मैं दिखाऊँ क्‍या
नजर के पास रह कर भी बढी दूरी बताऊँ क्‍या
न आना पास अब मेरे सभी सपने जला देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्‍यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना

मिला है तन तुझे मेरा नहीं क्‍यों मन लिया तुमने
कभी भी प्‍यार के इक पल नहीं मुझको दिया तुमने
दिया तुमने हवेली जो नहीं है काम की मेरे
न ये दौलत कभी देगी खुशी जो प्‍यार में तेरे
मुझे बस प्‍यार देकर तुम किया वादा निभा देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्‍यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना

समझती हूँ परेशा हो नहीं आराम है तन का
दबे हो काम से इतना नहीं है चैन भी मन का
मगर इतना बता दो तुम रहूँ किसके सहारे मैं
उठा तूँफान दरिया में जाऊँ कैसे किनारे मैं
जरा सा प्‍यार दे फिर से सजन मुझको जिला देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्‍यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 18, 2015 at 6:52pm

बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक  बधाई  श्री अखंड गहमरी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 11:25pm

आदरणीय  अखंड भाई , बढ़्या गीत रचना हुई है , 1222 1222 1222 1222 बह्र मे आपके खूब सूरत रचना की है , बधाई ।

उठा तूँफान दरिया में जाऊँ कैसे किनारे मैं  --  इस मिसरे को और देख लें , मात्रा गड़्बड़ है ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 7:55pm

बहुत खूब कहा है .. बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना

हुई क्‍यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना.... हार्दिक बधाई आदरणीय अखंड गहमरी साहब !

Comment by Akhand Gahmari on January 15, 2015 at 4:23pm

आपके मार्गदर्शन के अनुसार उसे संसोधन करने की कोशिश किया आदरणीय मिथिलेस वामनकर जी सादर नमन स्‍वीकार करें

Comment by Akhand Gahmari on January 15, 2015 at 4:20pm

उठा तूफान दरिया में नहीं पहुची किनारे मैं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 3:22pm
आदरणीय अखंड जी 1222x4 खूब निभाया है। सुन्दर गीत हुआ है। बधाई।
जाऊँ कैसे किनारे मैं। इसमें मात्रा के हिसाब से देख लीजियेगा।
Comment by Akhand Gahmari on January 15, 2015 at 1:29pm

आपके आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से सफलता की राह निकली है आदरणीय डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्‍वत जी चरण स्‍पर्श स्‍वीकार करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 15, 2015 at 12:47pm

प्रिय गहमरी जी

बहुत अच्छी भाव भरी कविता आपने लिखी है i आपको बधाई i

कृपया ध्यान दे...

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