For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल- मुझे शायरी में पुकार दे!

११२ १२ ११२ १२

तु गजल में थोडा खुमार दे!
तु जरा सा और सँवार दे!!

तेरे लफ्ज तेरी जमीन है!
इन्हें आँसुओं से निखार दे!!

उसे भूल जा है जो बेवफा!
ये लिबास गम का उतार दे!!

यूं घुमा फिरा के न बात कर!
मुझे साफ साफ नकार दे!!

मैं बिगड गया मुझे डाँट माँ!
मेरी जिन्दगी को सुधार दे!!

या खुदा तु कह दे घटाओं से!
मेरे खेत को भी दुलार दे!!

कि मैं दफ्न हूँ मेरे शे'र में!
मुझे शायरी में पुकार दे!!


मौलिक व अप्रकाशित!

Views: 1530

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 4:14pm
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी शुक्रिया
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2015 at 3:27pm

आदरणीय राहुल जी ..वाकई में शानदार ग़ज़ल ..कई बार पढ़ा ..आपकी रचना पर बिद्व्त्जानो की चर्चा से तमाम नयी जानकारी हासिल हुई . आपके इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 2:11pm
आदरणीय सौरभ जी बहुत बहुत शुक्रिया! मैं समझ गया !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2015 at 1:37pm

ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसका व्याकरण तनिक ज़िद्दी है. ऐसे में ग़ज़लकारों को ’ग़ज़ल के व्याकरण’ (अरुज़) की ज़िद्द माननी पड़ती है. इस ज़िद्द के अनुसार ही भाव और नियमों का सुगढ़ संयोग निभाना होता है. मिसरों में संतुलन बना कर चलना होता है. शुरुआत में जब हमआप सीखते हैं, तो सीखने के क्रम में सिर झुका कर ’ग़ज़ल के व्याकरण’ (अरुज़) की जिद्द को बस स्वीकार ही करना होता है. इसीसे ग़ज़लों की स्वीकार्यता बन पाती है और ग़ज़लकार वरिष्ठों द्वारा सुने-स्वीकारे जाते हैं.
जब आप स्थापित हो जायँ तो ग़ज़ल के अरुज़ पर साधिकार बात कर पाइयेगा. ऐसा हर ग़ज़लकार के साथ हुआ है, और होता रहेगा.
:-))

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:29pm

आदरणीयो मुझे बहुत कम नॉलिज है अगर मेरा कोई सवाल अटपटा हो तो मुझे क्रपया माफ भी कर दिया करों !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:26pm

आदरणीय सौरभ जी बहुत बहुत शुक्रिया मुझे एक नई बात और सीखाने के लिए! आदरणीय मैं हमेशा इसका ध्यान रखुंगा! परन्तु क्या यह बहुत अनिवार्य होता है कहने का मतलब है अगर भाव सुन्दर हो तब भी! मैं ऐसे मिसरो को सुधारने का प्रयत्न करता हुँ!

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:18pm
आदरणीय गिरीराज जी सही कहा आपने ! आपकी ये बात बहुत पसन्द आयी " न निराश हो न खुद को पूर्ण समझे! यहाँ हमने खुद को पूर्ण समझा शायरी वहीं खत्म!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2015 at 1:16pm

जैसी ग़ज़ल के भाव हुए हैं उसी तरह के सटीक सुझाव आये हैं, तथा, उसी अनुरूप सार्थक प्रयास हुआ है. ग़ज़ल का मेयार और चढ़ा है. भावाभिव्यक्ति अभिभूत कर रही है.

यह अवश्य है कि एक-एक कर आप बहुत कुछ सीखते जायेंगे, राहुल भाई.
एक शुरु से मेरा यही कहना था आपसे. जबतक आप प्रयास ही नहीं करेंगे कोई क्या संवाद स्थापित करेगा ? आज आपके प्रयासों पर जिस आत्मीयता से सुझाव आ रहे हैं, यही किसी नये हस्ताक्षर की अपेक्षा हुआ करती है.

इस प्रस्तुति पर जब इतना कुछ आपने समझ लिया तो एक बात और जानें.
जब कोई बहर दो बराबर भागों में बँटती दिखे, जैसा कि इस बहर में हो रहा है - ११२ १२ / ११२ १२ .. तो दोनों भागों के वाक्यांश अलग-अलग रखने की कोशिश करें. वर्नाइसे दोष माना जाता है.


अब जैसे अपना मतला लीजिये -
तु गजल में थो / डा खुमार दे!....... ..यहाँ थोड़ा का थो एक हिस्से में और ड़ा दूसरे हिस्से में गया.

तु जरा सा और सँवार दे!!.............  इसी तरह और का पहले हिस्से में और दूसरे हिस्से में गया.

ऐसे मिसरों को दोषपूर्ण मानते हैं. इसे ’शिकस्ते ना’रवा’ का दोष कहते हैं.


जबकि नीचे वाले शेर को देखिये -
उसे भूल जा है जो बेवफा!............. उसे भूल जा एक हिस्से में तथा है जो बेवफ़ा दूसरा हिस्सा, यानि, यह परफ़ेक्ट मिसरा है.
ये लिबास गम का उतार दे!!... . . ...इसी तरह ये लिबास ग़म एक हिस्से में है तो का उतार दे दूसरे हिस्से में है. यानि यह भी परफ़ेक्ट मिसरा है.

विश्वास है, आप ऐसे तथ्यों को भी अपने समझ का हिस्सा बनाते चलेंगे.
इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 1:01pm

आदरणीय राहुल भाई , इस मंच की यही ख़ासियत है कि यहाँ सभी सीखते भी हैं और सिखाते भी हैं , या कहें सही जानकारियाँ आपस मे साझा करते हैं । ग़लतियाँ भी होतीं हैं  और सुधार भी । न निराश हों न ही कभी अपने को पूर्ण समझें । जीवन सतत सीखते रहने की शृंखला है । मुझसे भी इतना सिखाने के बाद अभी गलतियाँ होतीं है , और होती ही रहेंगी और मै सुधार करता रहूँगा । बस सीखने की लगन मत छोड़िये । आप भी हर रचना को इसी नज़रिये से पढ़ा कीजिये और जो भी ग़लत लगे हमें बताया कीजिये । यही तो सीखना - सिखना है ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 12:50pm
आदरणीय खुर्शीद जी अपनी अपनी सोच होती है ! जब तक कोई बुराई से अवगत नहीं कराएगा तो हम सीखेंगे कैसे! वाह वाह करने को तो दोस्त काफी होते है! जिन्हें केवल भाव से मतलब होता शिल्प से नहीं! हम यहाँ शिल्प सीखने आये है! भाव तो कोई नहीं सीखा सकता! ठीक कहा न मैने सर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
3 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service