For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से

1222 1222 1222 122

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से 

शब-ए-ग़म में नया  किस्सा चलो इक बार फिर से 

तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम  लेगा 

तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से 

किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की 

वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से 

किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज 

यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से 

बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा 

निगलने आग का दरिया चलो इक बार फिर से 

वही गाफ़िल कदम अपने वही तनहा सफ़र फिर 

नई मंज़िल नया रस्ता चलो इक बार फिर से 

फ़लक साहिल तो युग लहरें समय था रेत लेकिन 

हुई सोच अपनी भी क़तरा चलो इक बार फिर से 

न सुलझेगी कभी हमसे पहेली ज़िंदगी की 

नई उलझन नया मसला चलो इक बार फिर से 

चुनौती आसमां को दें परों को खोलकर हम 

नई ताकत नई उर्जा चलो इक बार फिर से 

अनय के सामने झुककर बहुत चुप रह लिये हम

इरादा लब  कुशाई का चलो इक बार फिर से 

ज़िया 'खुरशीद' ने बाँटी ज़िगर अपना जलाकर 

नई ग़ज़ले नई भाषा चलो इक बार फिर से 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 850

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 1:54pm

आदरणीय गिरिराज सर , आपके आशीर्वाद के साये-साये चलने वाले को आप क्षमा-प्रार्थना की धूप से मत झुलसाइए | मैं अभी ग़ज़ल साधना के प्रथम सोपान पर हूं |यहाँ इस्लाह और तनकीद ऊपर से आया सहारे का हाथ होता है , विन्रम निवेदन है आप हाथ बढ़ाये रखियेगा | सादर क्षमापार्थी -खुरशीद 

Comment by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 1:48pm

आदरणीय गोपालनारायण सर ,आपका आशीर्वाद मेरे हौंसलों को नए पर देता है ,स्नेह बनाये रखियेगा |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 1:46pm

आदरणीय शकूर सर 

हार्दिक  आभार |आपको ग़ज़ल पसंद आई , मेरी मेहनत सफल हो गई |सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 1:23pm

फ़लक साहिल तो युग लहरें समय था रेत लेकिन 

हुई सोच अपनी भी क़तरा चलो इक बार फिर से---------anivarchneey I   ati sundar I


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 7:52am

जनाब खुर्शीद साहब लाजवाब ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार ग़ज़ल के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 1, 2015 at 7:33am

आदरणीय खुर्शीद भाई , सबसे पहले मै आपसे क्षमा चाहता हूँ , लापरवाही से आपकी गज़ल पढ़ के प्रतिक्रिया दे दिया । लापरवाही इसलिये कि मैने खुद अपनी गज़ल मे अलिफ वस्ल का उपयोग किया है । मुझे दुख है कि आपको मेरी वज़ह से इतनी ज़हमत उठानी पड़ी । पुनः क्षमाप्रार्थी हूँ । और लाजवाब ग़ज़ल के लिये पुणः बधाई प्रेषित कर रहा हूँ ।

Comment by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 12:23am

आदरणीय गिरिराज सर ,राहुलजी , मिथिलेश जी , सोमेश भाई ,आदरणीय विजयशंकर साहब ,हरिप्रकाश दुबे जी ,आप सभी का सादर आभार |आप सभी का स्नेह उतरोत्तर उत्कृष्ट लेखन को प्रोत्साहित करता है |मेरी समझ के हिसाब से आलोचित मिसरे में -

१. 'हुई सोच+ अपनी '  अलिफ़-वस्ल के कारण हुई सोचप -नी होने से १२-२२ (वतद+फासला) की तक्ती हो रही है |

उदाहरण - शायद उनका आखरी हो ये सितम (शायदुनका आखरी हो ये सितम =२१-२२  २१-२२  २१-२ )

२. 'नी भी क़तरा'  में  "नी " में  हुरुफे-इल्लत याय(ई )  की मात्रा गिरकर लाम (लघु) हुई है, अतः नि भी -क़तरा =१२-२२ (वतद+फासला ) की तक्ती हो रही है | उदाहरण - मुझे अपनी शामों से इक शाम देदो ( मुझे अप  नि शामों  स इक शा  म देदो =१२-२  १२-२  १२-२  १२-२)

शायद मैं गलत सीख रहा होऊं ,  इसीलिए मंच के अग्रजों की राय पुनः चाहता हूं , ताकि सही तथ्य सभी तक पहुँचे |

सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 7:37pm

किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की 

वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से ...आदरणीय खुर्शीद जी सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 6:24pm
न सुलझेगी कभी हमसे पहेली ज़िंदगी की
नई उलझन नया मसला चलो इक बार फिर से ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल। बधाई आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, सादर।
Comment by somesh kumar on December 31, 2014 at 4:18pm

सुंदर गज़ल ,भाई जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service