For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - कि तब जाके सुदर्शन को पडा मुझको उठाना था!

1222 1222 1222 1222

मेरी कुछ भी न गलती थी मगर दुश्मन जमाना था!
जमाने को मुझे मुजरिम का यह चोला उढ़ाना था!!

मेरे हाथों में बन्दूकें कहाँ थी दोस्त मेरे तब!
मैं तो बच्चों का टीचर था मेरा मकसद पढ़ाना था!!

हजारों कोशिशे की बात मैनें टालने की पर!
कहाँ टलती? रकीबों को तो मेरा घर जलाना था!!

मेरा भी था कली सा एक नन्हा,फूल सा बेटा!
वही मेरा सहारा था वही मेरा खजाना था!!

उतर आये लिये हथियार घर में जब अधर्मी वें!
कि तब जाके सुदर्शन को पडा मुझको उठाना था!!








मौलिक व अप्रकाशित!

Views: 1488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2015 at 6:11am

एक प्रस्तुति और सौ अफ़साने !! ..

इस प्रस्तुति पर हुई सकारात्मक चर्चा ने इस मंच के 'हेतु' को पुनर्प्रतिस्थापित किया है.
भाई राहुल डांगी  को हौसला चाहिये. ठीक है. लेकिन हौसलाअफ़्ज़ाई 'आरक्षण' का पर्याय नहीं है. रचनाकर्मी हतोत्साह की न सोचें, न ही तीखी आलोचना से घबरायें. अन्यथा, रचनाधर्मिता के लगातार हाशिये पर चले जाने का ख़तरा बनने लगता है. ऐसा कुछ मैं आदरणीय मिथिलेशभाई तथा भाई शिज्जूजी से विशेष तौर पर कह रहा हूँ. आप दोनों के वार्तालाप से बहुत कुछ सीखा-समझा जा सकता है. साथ ही, ऐसा भी संप्रेषित हो रहा है जो विन्दुवत संवाद को अन्यथा विस्तार दे दे.  

रचनाकर्म के स्तर को बढ़ाने के क्रम में स्वध्याय पहला सोपान है.
व्यक्तिगत तौर पर मैं इस मंच के नये सदस्यों से अत्यंत प्रभावित हूँ. परन्तु, यह प्रभाव तभी तक हमसभी को संतुष्ट रखेगा, जबतक यह भान बना रहेगा कि स्वाध्याय को रचनाकार अन्यथा ’काम’ नहीं समझ रहे हैं.

स्वाध्याय की प्रक्रिया रचनाकर्म का अन्योन्याश्रय हिस्सा है, भाई राहुल डांगीजी.
हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 1:52am

आदरणीय शिज्जु भाई जी, आपके जवाब के बाद आपकी टिप्पणी का मर्म समझा हूँ आपका कहना सही है, ऐसी टिप्पणियाँ आ रही है जो कभी कभी बहुत दुःख देती है. यद्यपि मुझे अब तक ऐसी टिप्पणी का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन कई नए रचनाकारों की रचनाओं विशेष कर ग़ज़ल विधा में ये बात ज्यादा हो रही है. शायद इसीलिए मैंने राहुल भाई जी की इस ग़ज़ल पर इतनी लम्बी टिप्पणी की थी. लेकिन एक बात और कहूँगा ये उनका तरीका है, ये उनका लहज़ा  है, उसे आप न अपनाये.(आपसे विशेष निवेदन) वैसे आपकी टिप्पणी का मर्म यदि ऐसे सभी लोगो तक पहुंचेगा ऐसी आशा है. वैसे भी समस्याएं और त्रुटियाँ बताने के साथ साथ समाधान भी बताया जाए तो और अच्छा हो. आपकी टिप्पणी पर एक दिशा में सोचकर आपत्ति दर्ज की थी. सभी पहलुओं पर फिर से विचार किया है।  आपकी बात से व्यक्तिगत तौर पर सहमत हूँ.  आपके लहज़े पर फ़िदा है शिज्जु भाई जी, उसी लहज़े को चलने दे बाकि  फिर सब शुभ शुभ है। . सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 2:07pm

आदरणीय मिथिलेश जी मेलबॉक्स में मैंने को जवाब इसलिये नहीं दिया क्योंकि आपकी वो आपत्ति वाली टिप्पणी अपनी जगह यथावत थी मैंने सोचा कि आप उसे काटकर मेलबॉक्स में चिपकायेंगे लेकिन वैसा नहीं हुआ और  आपकी टिप्पणी  के बाद बार बार मैंने अपनी टिप्पणी पढ़ी मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मैंने ग़लत क्या कहा था वो टिप्पणी मैने पूरी तरह से आदरणीय राहुल डांगी जी को संबोधित करते हुए लिखा था मेरी समझ के अनुसार उसमें बुरा मानने जैसा कुछ नहीं है । जी हाँ ये सीखने एवं सिखाने का मंच है। टिप्पणी होनी चाहिये लेकिन ये ज़रुर देखा जाना चाहिये कि रचनाकार नया है या पुराना। राहुल जी ने ये पहले भी स्वीकार किया था कि वो बह्र पर पिछले दो महीने से काम कर रहे हैं सम्प्रेषणीयत, ग़ज़लियत ये रचना में सतत अभ्यास से ही सुधार होगा। क्या ये सही नहीं है कि थोडा उन्हें वक्त दिया जाये। आदरणीय टिप्पणी हौसला अफ़्ज़ाई करने वाली होनी चाहिये हौसला तोड़ने वाली नहीं। मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूँ कई शुअरा हैं जिन्हें गुमान है कि वे बहुत अच्छे शायर हैं जो वो कहें वो सही इस बात को विस्तार सोचिये और हर पहलू को देखिये और मौजूदा दौर के दीगर शुअरा को भी ध्यान में रखिये। इसके बाद यदि कोई और आपत्ति हो तो आपका स्वागत है लेकिन यहाँ नहीं मेरे मेल बॉक्स में।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 12:07pm
आदरणीय शिज्जु भाई जी आपका उत्तर न मेसेज/मेल से मिला और न कमेंट में । वैसे मेरी बात को सकारात्मक परिप्रेक्ष्य में लें भाई जी और वही कमेंट लिख दे कृपा होगी। ये लिखने के पीछे भाई जी सकारात्मक सोच है कि उत्साहवर्धक कमेंट और सिखाने का सिलसिला बदस्तूर चलता रहे। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 11:45am
यही तो मैं भी कह रहा हूँ रचना पर रचना संबधी कमेंट हो । शिज्जु भाईजी का कमेंट रचना संबंधी कम था इसीलिए लिखना पढ़ा। यहाँ दुबारा इसलिए लिख रहा हूँ क्योक उत्तर नहीं मिला। मेसेज में भी वही कमेंट है जो शिज्जु भाईजी ने यहाँ लिखा है। उत्तर नदारद है। फिर भी क्षमा सहित पुनः यही पोस्ट कर रहा हूँ । खुले मंच की चर्चा है और बात राहुल भाई जी की रचना के परिप्रेक्ष्य में उठी है इसलिए यही उत्तर भी लिख देते तो बेहतर था। खैर इस हटधर्मिता के लिए क्षमा चाहता हूँ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 1, 2015 at 8:35am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी जितनी भी आपने मेरी गजल पढ़ी ये बहर में मेरी पहली गजले थी गजल बहर में लिखी जाती इसका पता मुझे केवल दो महिने पहले चला! मैने अकसर तुक बन्दी वाले गीत लिखे है! कुछ सवालो का जवाब पुछने पर भी नहीं मिलता ! पर टिप्पणीयाँ उसका दवाब दे देती है ! आप सबकी रचना पढ कर मेरी हिम्मत भी नहीं थी अपनी रचना भेजने की! फिर आदरणीय बागी जी ने हौसला दिया! मैं तो कुछ भी नहीं जानता मैं तो नर्सरी में भी नहीं हुँ अभी ! गलतीयाँ करता हु तो सीखता हुँ ! बस आपसे विनती आप मुझ कम बुद्धि पर अपने स्नेह यूं ही बनाए रखे ! अब मैं अपनी एक पुरानी रचना को बहर में लाने का प्रयत्न कर रहा हुँ! आपका स्नेह चाहुंगा! और शिज्जू शकूर जी ने वो मेरा हौसला अफजाई के लिए कहा था! आप उसे अन्यथा न ले! सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 6:12am
आदरणीय मिथिलेश जी आपने जो पूछा है उसके लिये ये जगह सही नहीं है। रचना के कमेंट बॉक्स में रचनासम्बन्धी चर्चा करना ज्यादा मुनासिब है
सादर,
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 1, 2015 at 5:56am
भावपूर्ण रचना। बधाई , आदरणीय राहुल डांगी जी, सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 3:18am

आदरणीय शिज्जु भाई जी आपके इस कथन पर मैं इस मंच पर पहली बार क्षमा मांगते हुए घोर आपत्ति दर्ज करा रहा हूँ -

"व्यस्त होने के बावजूद साहित्य के प्रति आपका समर्पण

व्यस्त सभी है. कुछ अतिव्यस्त है. आपके कथन से लग रहा है जैसे बाकी लोग खाली बैठे है. पुनः क्षमा सहित दूसरी आपत्ति भी दर्ज करा रहा हूँ -

"अक्सर शायरों को ये गुमान होता है कि वो श्रेष्ठ है या वो जो कहे वो सही या वो बहुत अच्छा शायर है "

आपके इस कथन से सीखने सिखाने की परंपरा पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया. अब कोई भी किसी त्रुटी को इंगित करने से पहले एक हजार बार सोचेगा कि कहीं मुझे कोई गुमान करने वाला न समझ बैठे...छोड़ो और फिर संकोच से टिप्पणी देंगे सुन्दर प्रस्तुति, बधाई .... ऐसे में सीखने सिखाने की परंपरा का क्या होगा आप भी समझते है.  सीखने सिखाने की परंपरा इस मंच की विशेषता रही है और आप इस मंच के पुराने और कार्यकारी सदस्य है अतः आपसे ऐसी टिप्पणी आशा, मेरे जैसा नया सदस्य कम से कम नहीं रखता. इस मंच के वरिष्ट सदस्यों को मैं गुरु की तरह मानकर सीख रहा हूँ इसलिए ऐसे कथन दुःख पहुंचाते है. प्रोत्साहित करना श्रेष्ट कर्म है किन्तु साध्य के साथ साधन की पवित्रता भी जरुरी है .  ये मेरे विचार है यदि आपको उचित न लगे तो क्षमा चाहता हूँ किन्तु उत्तर अवश्य दे ....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 2:44am
एक बात और आप हमेशा लिखते है कि मुझे नॉलेज नहीं है। इसका उत्तर भाईजी इस मंच पर मात्र एक क्लिक पर नॉलेज उपलब्ध है। आदरणीय सौरभ सर ने आपके कवर पेज पर बहुत सी सलाह दी है उनका अवश्य पालन करे सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
11 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service