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ग़ज़ल - बोलिये किसको सुनायें.. // -- --सौरभ

2122 2122 2122 212

 

दिख रही निश्चिंत कितनी है अभी सोयी हुई  
गोद में ये खूबसूरत जिन्दगी सोयी हुई

बाँधती आग़ोश में है.. धुंध की भीनी महक
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई

चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई

खेलता था मुक्त.. उच्छृंखल प्रवाही धार से
लौट वो आया लिये क्यों हर नदी सोयी हुई

बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई

अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई

जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई
========
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by वीनस केसरी on December 26, 2014 at 4:05am

अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई

बहुत खूब


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 1:49am

आदरणीय सौरभ सर,..... सच कहूं तो चमत्कृत हूँ इस ग़ज़ल को पढ़कर ...


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 1:48am

आदरणीय सौरभ सर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कहीं है हर अशआर अपने में मुकम्मल दास्तान बयाँ करता हुआ ... हर गज़लगो के लिए ग़ज़ल की कहन सीखने के लिए एक पूरा चैप्टर है ये ग़ज़ल. आपकी अनुभवी लेखनी को नमन ...

Comment by somesh kumar on December 25, 2014 at 11:34pm

हर मुक्कमल शे'र में खुबसुरत अर्थ निकलता है ,पहले में पितृभाव ,दुसरे में माँझी को पाने की तड़प ,तीसरा पुनः पितृ भाव से लबरेज़ ,चौथे में पिता के जीवन में आ रही स्थिरता या उसकी रसिकता का समाप्त होना ,अगली में लोगों की तर्कशक्ति का समाप्त होना ,अगली में नारी के बदले स्वरूप यानि पूरी गज़ल एक गम्भीर संदेश दे रही है |नमन है आपकी इस रचना को 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 25, 2014 at 10:12pm

बहुत सुंदर आदरणीय सौरभ सर बहुत कठिन रदीफ़ है आपने खूब निभाया है दिली दाद कुबूल फरमायें

कृपया ध्यान दे...

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