विभु से मांगो मित्र तुम, अब ऐसा वरदान
नये वर्ष में शांत हो, मानव का शैतान
हो न धरा अब लाल फिर, महके मनस प्रसून
किसी अबोध अजान का, नाहक बहे न खून
सबके जीवन में खुशी, छा जाए भरपूर
अच्छे दिन ज्यादा नहीं, भारत से अब दूर
कवि गाओ वह गीत अब, जिससे सदा विकास
तन में हो उत्साह प्रिय, मन में हो उल्लास
आपस में सद्भाव हो, सभी बने मन-मीत
ओज भरे स्वर में कवे, महकाओ कुछ गीत
ऐसा जिससे नग हिले, विचले पारावार
भरे देश हुंकार जब, बरसे धाराधार
पावन हो सबका ह्रदय, सुरभित हो संसार
स्वाति बूँद से हो प्रकट, गजमुक्ता, घनसार
स्वागत है नव्-वर्ष का, जिसमे नव उत्कर्ष
विकसित सबका हिय-कमल जगमग भारतवर्ष
भारत में ही भारती, सबको बांटे ज्ञान
नए वर्ष में हो नया, उनका भी अभियान
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सादर आभार आदरणीय
वंदनाजी
आभार i सादर i
बहुत बहुत आभार आदरणीय गजमुक्ता और घनसार के बारे में बताने के लिए सादर
विजय सर !
आपका स्नेह मेरा संबल i
आ० सौरभ जी
प्रणाम द्रोण !
वंदना जी
आपका आभार i स्वाति बूँद का बड़ा महत्त्व है i सीप में यह मोती बनती है i चातक की प्यास यही बुझाता है i हाथी के मद भरे सिर पर गिरता है तो गज-मुक्ता बनता है i केले के पत्ते पर गिरता है तो कपूर (घनसार ) बनता है और भी कई विशेषताएं हैं i सादर i
जवाहर लाल जी
आभार प्रकट करताहूं i
// यदि संबोधन चिन्ह लगा देता तो आपको जरा भी समय न लगता //
संभवतः, आदरणीय गोपाल नारायनजी..
एक से बढ़कर एक संग्रहणीय दोहे आदरणीय गोपाल सर
सर एक सविनय निवेदन है कि कृपया मेरी जिज्ञासा का निदान कीजियेगा
"स्वाति बूँद से हो प्रकट, गजमुक्ता, घनसार " के पीछे क्या तथ्य हैं यह बताइयेगा क्योंकि मुझे तो सिर्फ स्वाति से मोती बनने की बात ही पता है
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