छुपा कर दिल में रक्खी थी
बचपन में बनी प्रेम कहानी थी
तुम्हारे जिस पर नाम लिखे थे
दीवार वो, बहुत पुरानी थी
पगली ,इश्क में तेरे दीवानी थी
तूने फ़ौज मैं जाने की ठानी थी
तुझे सेहरा बाँध के आना था
निकाह की रस्म निभानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी
तेरी लाश तिरगे में आनी थी
उठ गए थे खुनी खंज़र
जान तो जानी ही थी
अरे आसमां से तो पूछ लेता
खुदा गर तुझे ,बिजली गिरानी थी
तू चाहता तो बक्श देता, ए खुदा
पर तुझे, दो नयी मज़ार बनानी थी !!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री श्याम नारायण वर्मा जी !
हरि प्रकाश दूबे जी आपने तरही मिसरे पर ग़ज़ल लिखने की अच्छी कोशिश की है आप ग़ज़ल कक्षा से ग़ज़ल लिखने की बारीकियां सीख कर और बेहतर कोशिश कर सकते हैं ,भाव बहुत सुन्दर है मर्म स्पर्शी हैं मात्राओं को २१२२ १२१२ २२ मापनी पर साधिये
बहरहाल आपको इस प्रयास पर हार्दिक बधाई
भावपूर्ण ,प्रेम का अंत या पूर्णता ,कहना मुशकिल है
बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति. |
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