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"क्या बात है, आपने कुर्बानी क्यों नहीं दी इस बार ? "
"दरअसल क़ुरआन मजीद फिर से पढ़ ली थी मैंने |"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 8, 2014 at 12:25am

बहुत ही कम शब्दों में, बहुत कुछ कह दिया आपने. बधाई आदरणीय विनय जी

Comment by विनय कुमार on October 7, 2014 at 8:27pm

आभार महिमा श्री जी | 

Comment by विनय कुमार on October 7, 2014 at 8:26pm

आभार राजेश कुमारीजी , असल में धर्म के मर्म को जाने बिना ही लोग तमाम आडंबर अपना लेते हैं | काश लोग समझें | बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिप्पणी के लिए |

Comment by MAHIMA SHREE on October 7, 2014 at 8:03pm

वाह ...बधाई बहुत बड़ी बात कह दी आपने ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2014 at 7:37pm

चाहे कोई भी धर्म हो अल्लाह हो या ईश्वर  हो किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में हत्या को पाप माना जाता है यदि कोई सच्चे दिल से  पढ़े तो असर तो होगा ही,....बहुत अच्छी लघु कथा अच्छी सीख देती हुई |बधाई आपको   

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