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अब ऐसा क्यूँ होता है

मिलती है तूँ ख्वाबो में,
अक्सर ऐसा क्यूँ होता है!
तेरी यादों के घेरे में,
ये दिल चुपके से रोता है!
आँखों का भी क्या कहना,
ना जाने कब सोता है!
दीदार तेरे कब होंगे,
सपने यही संजोता है!
मन रहता है विचलित सा,
क्या पाया, क्या खोता है!
तन भी लगता है मैला
पापो की गठरी ढ़ोता है!
खुद की भी परवाह नही,
अब ऐसा क्यूँ होता है!!

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Pawan Kumar on October 6, 2014 at 6:19pm

आदरणीया सविता मिश्रा जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Pawan Kumar on October 6, 2014 at 6:17pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर अभिवादन, रचना की सराहना के लिए हृदय से आभार!

Comment by Pawan Kumar on October 6, 2014 at 6:16pm

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi"   जी सादर अभिवादन, मार्गदर्शन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2014 at 8:42pm

सुन्दर प्रयास , आदरणीय बधाइयाँ |

Comment by savitamishra on October 3, 2014 at 1:45pm

खूबसूरत


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2014 at 10:29am

भाई पवन कुमार जी, साथियों की रचनाओं को पढ़िए, खुदबखुद आपकी रचना निखरने लगेगी। 

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