For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत//कल्पना रामानी//

माँ

ज़िक्र त्याग का हुआ जहाँ माँ!

नाम तुम्हारा चलकर

आया।

 

कैसे तुम्हें रचा विधना ने

इतना कोमल इतना स्नेहिल!    

ऊर्जस्वित इस मुख के आगे

पूर्ण चंद्र भी लगता धूमिल।

 

क्षण भंगुर भव-भोग सकल माँ!

सुख अक्षुण्ण तुम्हारा   

जाया।

 

दिया जलाया मंदिर-मंदिर

मान-मनौती की धर बाती।

जहाँ देखती पीर-पाँव तुम  

दुआ माँगने नत हो जाती।

 

क्या-क्या सूत्र नहीं माँ तुमने

संतति पाने को

अपनाया।

 

गुण करते गुणगान तुम्हारा

तुमको लिख कवि होते गर्वित।

कविता खुद को धन्य समझती

माँ जब उसमें होती वर्णित।

 

उपकृत हर उपमान तुम्हीं से

हर उपमा ने तुमको

गाया।

 

चाह यही हर भाव हमारा

तव चरणों में ही अर्पण हो।

मातु! कलेजे के टुकड़ों को

टुकड़ा टुकड़ा हर इक गुण दो।

 

हम भी कुछ लौटाएँ तुमको

जो-जो हमने तुमसे

पाया।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 577

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on October 5, 2014 at 9:56pm

हार्दिक आभार सीमा जी

Comment by seemahari sharma on October 5, 2014 at 8:40pm
बहुत सुंदर गीत है कल्पना जी बधाई
Comment by कल्पना रामानी on October 5, 2014 at 6:33pm

आदरणीय नरेंद्र जी, हार्दिक धन्यवाद आपका

Comment by कल्पना रामानी on October 5, 2014 at 6:33pm

प्रिय सविता, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on October 5, 2014 at 6:28pm

आदरणीय गणेश जी, रचना की सराहना के लिए आपका दिली धन्यवाद

Comment by savitamishra on October 3, 2014 at 1:40pm

बहुत खूबसूरत...सादर .नमस्ते दी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2014 at 10:36am

//गुण करते गुणगान तुम्हारा

तुमको लिख कवि होते गर्वित।

कविता खुद को धन्य समझती

माँ जब उसमें होती वर्णित।//

यह बंद सबसे खूबसूरत हुआ है, आदरणीया नवगीत पर आपकी पकड़ जबरदस्त है, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई।   

Comment by कल्पना रामानी on October 2, 2014 at 9:50pm

आदरणीय सुलभ जी, आपने वाकई बेहतर सुझाव दिया है, शायद कुछ समय बाद मेरे दिमाग में यही विचार आता। इससे अंतरा  और सुंदर बन जाएगा। आपका हृदय से धन्यवाद

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 9:07pm

ण्क-ण्क पंक्ति वाह की हकदार है। वाकई बहुत सुन्दर गीत हुआ है। बधाई कल्पना जी !
क्या अंतिम बंद में अर्पित की जगह अर्पण किया जा सकता है ? - देख लें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service