For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए (ग़ज़ल 'राज')

12122 12122 1212

कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए

 ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए  

 

यतीम का बचपना निराला न छीनिए

जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए

 

बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ      

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए

 

नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता          

किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए

 

समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का

गरीब बच्चों से  पाठ शाला न छीनिए 

 

जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं

उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए

पुछल्ला ---

 यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा 

 कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए 

------------------------------

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1019

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:13am

मिथिलेश जी,मेरी पुरानी ग़ज़लों को रीफ्रेश करने का बहुत- बहुत शुक्रिया ,आपको ये ग़ज़ल प्रभावित की मेरा लिखा सफल हुआ हार्दिक आभार आपका.   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 12:03am

कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए

 ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए  ........... बेहतरीन मतला  

 

यतीम का बचपना निराला न छीनिए

जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए ........ बहुत अच्छा हुस्ने मतला 

 

 

नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता          

किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए..... उम्दा शेर 

बहुत अच्छी और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2014 at 7:43pm

आ० विजय मिश्र जी ,आपको अशआर प्रभावित कर पाए मेरा लिखना सार्थक हुआ आपकी इस उत्साह्वर्धनीय प्रतिक्रिया की तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2014 at 7:41pm

आ० संतलाल करुण जी ,आपको ग़ज़ल पसंद  आई, मेरी कलम को संबल मिला तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ सादर .

Comment by विजय मिश्र on September 1, 2014 at 5:43pm
राजेशजी,
सारे के सारे बिम्ब आला और अलग से हैं ,हर बंद झकझोरता है ,ये लाइन तो मासल्ला ,क्या कहने ,अकेली ही गजल का मकसद पूरा करती है -
" नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए|" -- हार्दिक शुभकामनाएँ |
Comment by Santlal Karun on September 1, 2014 at 5:38pm

आदरणीया राकेश कुमारी जी,

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !  --

"बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ      

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए"


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2014 at 4:33pm

आ० गिरिराज जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभारी हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:06pm

आदरणीया राजेश जी , हमेशा की तरह ये ग़ज़ल भी आपके बहुत बढ़िया कही है  , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 29, 2014 at 5:21pm

आ० डॉ.गोपाल नारायण जी ,आपको ग़ज़ल के अशआर प्रभावित किये मेरा लिखना सफल हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ सादर.   

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2014 at 12:31pm

महनीया

बेहतरीन गजल i कई  अशआर बहुत ही अच्छे है -

नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता          

किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service