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छोटी बह्र की एक ग़ज़ल-रात

जैसे जैसे बिख़री रात,
बिस्तर बिस्तर पिघली रात.
.

चाँद के साथ बदलती रँग,
काली भूरी कत्थई रात.
.

चाँद ज़मीं पर उतरा था,
हुई अमावस पिछली रात.
.
एक शम’अ थी साथ मेरे,  
फिर भी तन्हा सुलगी रात.
.

आते आते ख्व़ाब तेरे,
दामन से क्यूँ फ़िसली रात.

.
दौर चलेंगे यादों के,
लिया करेगी हिचकी रात.  
.
पिया गए परदेस सखी,
भीगी सहमी सिसकी रात.    
.

रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात.
.
निलेश "नूर"

Views: 637

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 13, 2014 at 4:37pm

धन्यवाद आ. डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 13, 2014 at 4:36pm

धन्यवाद आ. नरेंद्रसिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 13, 2014 at 4:36pm

धन्यवाद आ. जीतेन्द्र जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 10:46am

bahut sundar-----

 

आते आते ख्व़ाब तेरे,
दामन से क्यूँ फ़िसली रात.

.
दौर चलेंगे यादों के,
लिया करेगी हिचकी रात.  
.
पिया गए परदेस सखी,
भीगी सहमी सिसकी रात.    
.

रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात.
.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 13, 2014 at 9:22am

रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात......बहुत सुंदर

दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय निलेश जी

कृपया ध्यान दे...

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