जैसे जैसे बिख़री रात,
बिस्तर बिस्तर पिघली रात.
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चाँद के साथ बदलती रँग,
काली भूरी कत्थई रात.
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चाँद ज़मीं पर उतरा था,
हुई अमावस पिछली रात.
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एक शम’अ थी साथ मेरे,
फिर भी तन्हा सुलगी रात.
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आते आते ख्व़ाब तेरे,
दामन से क्यूँ फ़िसली रात.
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दौर चलेंगे यादों के,
लिया करेगी हिचकी रात.
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पिया गए परदेस सखी,
भीगी सहमी सिसकी रात.
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रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात.
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निलेश "नूर"
Comment
धन्यवाद आ. डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
धन्यवाद आ. नरेंद्रसिंह जी
धन्यवाद आ. जीतेन्द्र जी
bahut sundar-----
आते आते ख्व़ाब तेरे,
दामन से क्यूँ फ़िसली रात.
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दौर चलेंगे यादों के,
लिया करेगी हिचकी रात.
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पिया गए परदेस सखी,
भीगी सहमी सिसकी रात.
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रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात.
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रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात......बहुत सुंदर
दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय निलेश जी
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