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बोलने से कौन करता है मना - (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    212

**********************

जन्म  से  ही   यार  जो  बेशर्म  है
पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है
**
छेड़ मत तू बात किस्मत की यहाँ
साथ  मेरे  शेष  अब  तो  कर्म  है
**
बोलने  से  कौन  करता है मना
सोच पर ये शब्द का क्या मर्म है
**
चाँद  आये  तो  बिछाऊँ  मैं उसे
 एक  चादर  आँसुओं  की नर्म है
**
शीत का मौसम सुना है आ गया
पर चमन की  ये हवा क्यों गर्म है
**
( रचना - 30 जुलाई 2014 )

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on August 12, 2014 at 12:30pm

चाँद  आये  तो  बिछाऊँ  मैं उसे
 एक  चादर  आँसुओं  की नर्म है
**
शीत का मौसम सुना है आ गया 
पर चमन की  ये हवा क्यों गर्म है///वाह वाह

बहुत बहुत बधाई  आदरणीय भाई लक्ष्मण जी....  सादर  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:16am

आ० भाई जीतेन्द्र जी , ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:14am

आ० भाई गोपालनारायण जी ,ग़ज़ल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 10:06am

जन्म  से  ही   यार  जो  बेशर्म  है
पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है...........वाह! एकदम सीधा चुभ जाए

हरेक शे'र पर बधाई आपको आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:43pm

धामी भई बहुत अच्छे i

चाँद  आये  तो  बिछाऊँ  मैं उसे
 एक  चादर  आँसुओं  की नर्म है
**

 

 

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