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दोहे - मीना पाठक

होते जो बहुरूपिया, मिले न उनकी थाह |
मन में अंतरघात  है, सुर है मधुर अथाह ||

गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात ||

.

जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज 
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज ||

किस्मत में जो था मिला, सर फोड़े क्यों रोय |
पूर्व जन्म का कर्म है, अब रोये क्या होय ||

मीना पाठक 
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Meena Pathak on August 4, 2014 at 11:31am

आदरणीय विजय शंकर जी, आ० शिज्जू जी, प्रिय कल्पना जी, प्रिय महिमा जी, आ० सविता जी , आ० राम शिरोमणि जी, आ० जवाहर लाल जी, आ० रमेश जी और प्रिय जितेन्द्र जी दोहे सराहने हेतु आप सभी का हृदय से आभार | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2014 at 11:02am

बहुत सुन्दर सार्थक दोहे लिखें हैं मीना जी क्या बात है ....बहुत बहुत बधाई 

अंतिम दोहे के प्रथम चरण को इस तरह लिखें तो मेरे ख्याल से ज्यादा प्रभावी होगा ----किस्मत में था जो मिला ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 9:32am

जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज 
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज......बहुत सुंदर सटीक सन्देश, बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना दीदी

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 8:21pm

मनमोहक दोहे, आदरणीया सादर बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 8:19pm

जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज 
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज |

सुन्दर प्रस्तुति!

Comment by ram shiromani pathak on August 3, 2014 at 8:13pm

सुन्दर प्रयास हुआ है  आदरणीया।हार्दिक बधाई आपको। ।   सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on August 3, 2014 at 5:27pm

गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात... sabhi dohen acche hai ye bahut pasand aaya .. hardik bdhai aadarniya mina di saadar

Comment by savitamishra on August 3, 2014 at 12:17am

सुन्दर दोहे नसीहतो के साथ 

Comment by kalpna mishra bajpai on August 2, 2014 at 10:54pm

मीना दी छुपी रुसतुम । बधाई बधाई /सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 2, 2014 at 6:35pm

आदरणीया मीना जी सारे दोहे बहुत अच्छे कहे हैं बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

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