होते जो बहुरूपिया, मिले न उनकी थाह |
मन में अंतरघात है, सुर है मधुर अथाह ||
गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात ||
.
जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज ||
किस्मत में जो था मिला, सर फोड़े क्यों रोय |
पूर्व जन्म का कर्म है, अब रोये क्या होय ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय शंकर जी, आ० शिज्जू जी, प्रिय कल्पना जी, प्रिय महिमा जी, आ० सविता जी , आ० राम शिरोमणि जी, आ० जवाहर लाल जी, आ० रमेश जी और प्रिय जितेन्द्र जी दोहे सराहने हेतु आप सभी का हृदय से आभार | सादर
बहुत सुन्दर सार्थक दोहे लिखें हैं मीना जी क्या बात है ....बहुत बहुत बधाई
अंतिम दोहे के प्रथम चरण को इस तरह लिखें तो मेरे ख्याल से ज्यादा प्रभावी होगा ----किस्मत में था जो मिला ..
जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज......बहुत सुंदर सटीक सन्देश, बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना दीदी
मनमोहक दोहे, आदरणीया सादर बधाई
जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज |
सुन्दर प्रस्तुति!
सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीया।हार्दिक बधाई आपको। । सादर
गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात... sabhi dohen acche hai ye bahut pasand aaya .. hardik bdhai aadarniya mina di saadar
सुन्दर दोहे नसीहतो के साथ
मीना दी छुपी रुसतुम । बधाई बधाई /सादर
आदरणीया मीना जी सारे दोहे बहुत अच्छे कहे हैं बहुत बहुत बधाई
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