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तीन विशेष कुण्डलिया // --सौरभ

1.
खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार
छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार
फिर चिंता क्या यार, गजब हूँ धुन का पक्का
रह-रह चढ़े तरंग, जगत भी हक्का-बक्का
रहता मस्त-मलंग, फाड़ता रह-रह पर्चा
और खुले ये हाथ, यहीं हर आमद-खर्चा

 

2.
जग तो बड़ा सुजान है, लेकिन हम हतभाग्य
फिर भी मन संयत रहा, यही तनिक सौभाग्य
यही तनिक सौभाग्य, बीतता देखा हर पल
मिलजुल पल दें सीख, वही फिर मन के संबल
नहीं किसी से बैर, नहीं मन भारी, डगमग
किससे करें सवाल, पता जब है कैसा जग !
 

3.
कैसी जग की रीति अब, कैसा जग-व्यवहार
लोंदे के आदेश पर चढ़ता चाक कुम्हार
चढ़ता चाक कुम्हार, उलट क्या बहती गंगा
जिसके ईश कुबेर, उसे ही देखा नंगा
चूहा करता ऐंठ, सिंह की ऐसी-तैसी
तप का फल दुत्कार, ज़िन्दग़ी पायी कैसी !!
*************
-सौरभ
*************
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 5, 2014 at 12:51pm

आदरणीय

खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार
छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार

तथा

लोंदे के आदेश पर चढ़ता चाक कुम्हार
चढ़ता
चाक कुम्हार, उलट क्या बहती गंगा
जिसके ईश कुबेर, उसे ही देखा नंगा

अतीव सुन्दर  i

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2014 at 11:16am

आदरणीय सौरभ जी बेहद खूबसूरत संदेशात्मक कुण्डलिया - हर कुण्डलिया का अपना सन्देश  .... इस शानदार सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2014 at 11:04am

खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार
छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार

बहुत खूब कहा आ० भाई सौरभ जी , इन खूबसूरत कुंडलियों के लिए बहुत बहुत बधाई .

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 5, 2014 at 10:21am

आ० सौरभ पाण्डेय जी,आपके
"गीतों में यूँ व्यंग होता है , मेंहदी में ज्यों रंग होता है".
प्रस्तुत कुंडलियों में यही सच उजागर हुआ है.बहुत बहुत बधाई

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