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ग़ज़ल- तूने मुझे निकलने का जब रास्ता दिया

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,

जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।

हम प्रेम प्रेम प्रेम करें,  प्रेम प्रेम प्रेम,

कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।

हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,

परमात्मा ने प्रेम,  हमें सर्वथा दिया।।

वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,

देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.

मौलिक व अप्रकाशित रचना

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Comment by Sarita Bhatia on May 19, 2014 at 6:24pm

वाह 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 19, 2014 at 6:16pm

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

बड़ा खूबसूरत मत्ला हुआ है सूबे सिंह जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by Madan Mohan saxena on May 19, 2014 at 4:54pm

बहुत खूब,सुन्दर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2014 at 10:45am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें .

Comment by Meena Pathak on May 19, 2014 at 8:30am

बहुत सुन्दर रचना ... बधाई | सादर 

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