जब सूरज डूब जायेगा
सब कुछ समा जाएगा
महासागर की अतल गहराइयों में.
पर्वत का तुंग शिखर भी
नहीं बचेगा तृण मात्र
हड्डियों तक का नहीं रहेगा अस्तित्व.
जीवित रहेंगे फिर भी
खारे पानी के जीव ..
...............
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी रचना को गहराई से समझने एवं सराहने हेतू हार्दिक आभार आपका.. स्नेह बनाये रखें ..
आदरणीय विजय निकोरे साहब बहुत आभार आपका...
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .
विषम में भी जी सकने वाले ही बचे रहते हैं की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है. दरअसल, प्राकृतिक शुचिता की संज्ञाओं का, खारे पानी का और उसके जीवों का बिम्ब कुछ और भी कहता लगा --तामसिक वृत्तियाँ जब चाहे सर उठा सकती हैं.
बिम्बों का सही प्रयोग करने के लिए हार्दिक बधाई, भाईजी
सोचने को बाधित करती इस रचना के लिए बधाई, आदरणीय।
आदरणीय नीरज भाई , सुनदर और सटीक रचना के लिये आपका आभार ॥
आदरणीया मीना पाठक जी आपका बहुत आभार.
आदरणीय भ्रमर साहब आपका बहुत धन्यवाद..
आपका हार्दिक आभार आदरणीय जीतेन्द्र गीत जी ..
सार्थक और सटीक रचना हेतु बधाई | सादर
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