For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अगर हो जिंदगी देनी - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222

**  **
हॅसी  में  राज पाया  है, कि कैसे  उन  को मुस्काना
उदासी  से  तेरी   सीखे, कसम  से  फूल  मुरझाना

**
भले ही  खूब  महफिल  में, हया का  रंग  दिखला तू
गुजारिश तुझ से पर दिल की, अकेले में न शरमाना

**
करो नफरत से  नफरत तुम, इसी से  दूरियाँ बढ़ती
मुहब्बत  पास  लाती है, भला  क्या  इससे घबराना

**
हमें   है   बंदिशों   जैसे,  कसम  से  रतजगे  उसके
इसी से हो  गया मुश्किल, सपन में  यार अब जाना

**
अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना

**
बहुत अच्छी समझ उसको, धरम की मूल बातों की 

सियासत धर्म की बातें, ‘मुसाफिर’ को न समझाना

*मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 577

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on April 26, 2014 at 9:46pm

हर शेर लाजबाब है आदरणीय दिली दाद कबूल करें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 2:14pm

भले ही खूब महफिल में, हया का रंग दिखला तू
गुजारिश तुझ से पर दिल की, अकेले में न शरमाना.......दिलकश
हमें है बंदिशों जैसे, कसम से रतजगे उसके
इसी से हो गया मुश्किल, सपन में यार अब जाना...............बेहतरीन
अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा खुद को कहोगी तो, मिटेगा कोई परवाना.................क्या बात है
आदरणीय लक्ष्मण जी हर शेर उम्दा है ..लेकिन इन शेरोन का तो कोई जवाब ही नहीं ..आनद आ गया ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर
**


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 24, 2014 at 12:05pm

हमें   है   बंदिशों   जैसे,  कसम  से  रतजगे  उसके
इसी से हो  गया मुश्किल, सपन में  यार अब जाना----सबसे ज्यादा पसंद आया ये अशआर ,दाद कबूलिये इस सुन्दर ग़ज़ल पर. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2014 at 9:01pm

हमें   है   बंदिशों   जैसे,  कसम  से  रतजगे  उसके
इसी से हो  गया मुश्किल, सपन में  यार अब जाना

**
अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना --------- आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही , दोनो अशआर बहुत खूब सूरत लगे , बधाइयाँ ॥

Comment by umesh katara on April 23, 2014 at 8:04pm

बढिया सर बधाई

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 23, 2014 at 11:20am

आदरणीय लक्ष्मण जी
बहुत बढ़िया.. मुबारक हो

बहुत अच्छी समझ उसको, धरम की मूल बातों की

सियासत धर्म की बातें, ‘मुसाफिर’ को न समझाना

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2014 at 9:38am

अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना...........वाह! जिंदाबाद शेर

दिली बधाई स्वीकार करें आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 8:14am

वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई है बहुत सुन्दर रवानी

अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना.......... के लिए विशेष दाद

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service