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बांट के छाव, धूप पीते हैं
ज़िन्दगी हम शज़र की जीते हैं
चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं
तीर दिल पे चलाये छुप के, पर
सामने सब के ज़ख़्म सीते हैं
मैने देखा है वक़्ते आख़िर में
हाथ जितने दिखे, वो रीते हैं
बात उल्टी लगेगी, है सीधी
स्वाद मीठे, असर से तीते हैं
लम्हे खुशियों के ज्यों कपूर उड़े
ग़म के , ज्यों माह साल बीते हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
/बांट के छाव, धूप पीते हैं
ज़िन्दगी हम शज़र की जीते हैं
तीर दिल पे चलाये छुप के, पर
सामने सब के ज़ख़्म सीते हैं
आदरणीय भाई गिरिराज जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
आदरणीय बैद्यनाथ भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय शिज्जू भाई , आपकी सराहना से रचना कर्म को आत्मिक संतोष मिलता है , आपका आभार ॥
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
जोरदार शुरुआत ..
बांट के छाव, धूप पीते हैं
ज़िन्दगी हम शज़र की जीते हैं...उम्दा मान्यवर
बात उल्टी लगेगी, है सीधी
स्वाद मीठे, असर से तीते हैं...क्या कहने
//चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं
तीर दिल पे चलाये छुप के, पर
सामने सब के ज़ख़्म सीते हैं// वाह आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन अशआर हैं दिली दाद कुबूल करें
इस अच्छी गज़ल के लिए आपको बधाई, भाई गिरिराज जी।
बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय गिरिराज जी
चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं
तीर दिल पे चलाये छुप के, पर
सामने सब के ज़ख़्म सीते हैं...............इन दो शेर पर विशेष बधाई
आदरणीय चन्द्र शेखर भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
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